Smile please: आपको भी चाहिए अपनी हर बात पर दूसरों की प्रशंसा

Sunday, Jun 04, 2023 - 11:11 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Ego psychology: मनुष्य के लिए अहंकार वह शत्रु है, जो अंदर ही अंदर चोट मारकर खोखला करता जाता है और पता तक नहीं लगने देता। अहंकारी व्यक्ति को जरा भी पता नहीं होता और वह अहंकार के नशे में चूर होकर झूठी शान दिखाता फिरता है। अहंकार भी कई प्रकार के होते हैं :

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रूप व यौवन का अहंकार
परमात्मा की बनाई इस सृष्टि में कोई गोरा है, तो कोई काला है लेकिन यदि किसी के पास रूप है तो वह घमंड न करें, क्योंकि यह चार दिन की जिंदगी है, धीरे-धीरे यह भी ढलती चली जा रही है। यह किसी की सगी नहीं है। अत: सावधान रहो और अहंकार न करो।

धन का अहंकार
धन तो पानी की तरह बहने वाला है। यह कब बह जाए पता नहीं। इसकी उपयोगिता है दान करने में। यूं ही इसका अहंकार अच्छा नहीं कि मेरे पास इतना है। है तो क्या हुआ किसी अभावग्रस्त के काम तो नहीं आ रहा।

बल का अहंकार
किसी के पास यदि शारीरिक बल ज्यादा है तो उसे अपने बल का घमंड हो जाता है। वास्तव में बल की उपयोगिता है राष्ट्र का नाम रोशन करने में। बल की ओर भी अच्छी उपयोगिता है किसी गिरते हुए को ऊपर उठाने में, न कि कमजोर को गिराने में। रावण, कंस, हिरण्यकश्यप आदि बल के अहंकार के कारण ही तो मारे गए।

विद्या का अहंकार
विद्या विनय देती है परंतु कुछ लोग विद्या पाकर अकड़ जाते हैं। समझते हैं कि अब उनके बराबर कोई नहीं है लेकिन जब अपने से बड़े विद्वान मिलते हैं तो उनका विद्या का सारा अहंकार उतर जाता है।

साधना का अहंकार : साधक लोगों में भी अपने साधक व तपस्वी होने का अहंकार आ जाता है क्योंकि वे अपने अहंकार को साधना में भी पालते रहते हैं। पौराणिक साधु तो बहुत ऐसे मिल जाएंगे जो अपने साधुपने के अहंकार में चूर हैं। वे अपने सामने बाकी लोगों को मूर्ख व बेवकूफ समझते हैं।

कर्म का अहंकार
कर्मों में यदि कर्तापन का त्याग न किया तो वह अहंकार पैदा करेगा इसीलिए त्याग भाव से ही कर्म करना चाहिए। कार्य के पूरा होने पर भी हमेशा विनम्र बने रहो। ढोल न पीटते रहो। बात तब है जब लोग आपकी प्रशंसा स्वयं करें।

Niyati Bhandari

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