Smile please: नरक का मार्ग अच्छी योजनाओं से बना है

Tuesday, Feb 07, 2023 - 10:23 AM (IST)

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Smile please:  में जो कुछ सुंदर दिखाई पड़ता है, वह मनुष्य की श्रमशीलता का ही सुफल है। कला-कौशल की सारी उपलब्धि श्रम के आधार पर ही होती है। यदि मनुष्य ने श्रम को न अपनाया होता तो वह भी अन्य पशुओं की तरह पिछड़ी स्थिति में पड़ा रहता। सतत् कठिन श्रम, निरंतर कर्मशीलता ही सुख का आधार है। जो निष्क्रिय है, कुछ नहीं करता, हाथ-पांव नहीं हिलाता, आलस्य में पड़ा रहता है, वह वास्तविक अर्थों में जीवन भी नहीं कहा जा सकता, फिर सुखी कैसे होगा?

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किसी कार्य की योजना बनाना, लंबी-लंबी बातें सोचना एक बात है, उसे वास्तविक जीवन में कार्यों द्वारा अभिव्यक्त करना बिल्कुल दूसरी। अनेक व्यक्ति यह गलती करते हैं कि अपनी समस्त शक्तियां केवल सोचने-विचारने, योजना निर्मित करने में लगा देते हैं, वास्तविक संसार में प्रत्यक्ष कर दिखाने का उन्हें अवसर ही प्राप्त नहीं होता। कठिन परिश्रम करने की उन्हें आदत नहीं होती। वे परिश्रम के कार्य से दूर भागते हैं। बातें हजार बनाएंगे, किंतु कार्य रत्तीभर भी न करेंगे।

संसार में इतनी आवश्यकता बातचीत, योजनाओं, जबानी जमा-खर्च की नहीं है, जितनी कार्य की। जो विचार कार्य रूप में परिणत हो गया, वह जीवित विचार कहा जाएगा, जिन विचारों, योजनाओं पर अमल नहीं हुआ, जिन्हें प्रत्यक्ष जीवन में नहीं उतारा गया, वे मृतप्राय हैं। उन पर व्यय की गई शक्ति अपव्यय ही है।

क्रियात्मक कार्य ही संसार का निर्माण करता है। सफल व्यक्ति अपने आंतरिक विचार तथा बाह्य कार्य में पर्याप्त समन्वय करने की अपूर्व क्षमता रखते हैं। उनके पास क्रियात्मक विचारों की शक्ति रहती है। वे अपने विचारों को जीवन देते हैं, अर्थात उन पर निरंतर काम करते हैं और प्रत्यक्ष जीवन में उतारते हैं। कहा गया है ‘‘नरक का मार्ग अच्छी योजनाओं से बना है।’’

तात्पर्य यह है कि अच्छी बातें सोचने वाले केवल सोचते ही रह जाते हैं, वास्तविक कार्य नहीं करते। सोचने ही सोचने में उनकी इतनी शक्ति व्यय हो जाती है कि कार्य करने की शक्ति नहीं बचती। जिन महत्वपूर्ण योजनाओं का कोई उपयोग न हो और जो कपोल कल्पना मात्र हों, उनसे क्या लाभ ?

नेपोलिन कहा करता था, ‘‘मुझसे कोरी बातें न करो। कार्य करके दिखाओ। मैं कार्य चाहता हूं। ठोस जीता-जागता पुरुषोचित कार्य। बातें नहीं, मुझे कार्य चाहिए।’’

संसार में जो कुछ सुंदर दिखाई पड़ता है, वह मनुष्य की श्रमशीलता का ही सुफल है। कला-कौशल की सारी उपलब्धि श्रम के आधार पर ही होती है। यदि मनुष्य ने श्रम को न अपनाया होता तो वह भी अन्य पशुओं की तरह पिछड़ी स्थिति में पड़ा रहता।
मनुष्य को छोड़कर संसार के सारे प्राण आज भी उसी आदि स्थिति में रह रहे हैं, जिसमें वे सृष्टि के आरंभ में थे। मनुष्य की प्रगति का कारण उसकी श्रमशीलता ही है।

कोई भी उन्नति, प्रगति अनवरत श्रमशीलता की अपेक्षा रखती है। आज भी संसार में हजारों-लाखों खंडहर ऐसे पाए जाते हैं, जो मनुष्य की श्रमशीलता की गवाही देते हुए उसके आलस्य एवं उदासीनता पर आंसू बहा रहे होते हैं। बड़े-बड़े साम्राज्य, बड़े-बड़े समाज, बड़ी-बड़ी सभ्यताएं और बड़ी-बड़ी संस्कृतियां मनुष्य की श्रम साधना से बनीं और फिर उसी की श्रम की उपेक्षा की प्रवृत्ति के कारण मिट गईं। श्रम के बल पर बनाई गई कोई भी वस्तु बनी रहने के लिए निरंतर श्रम की अपेक्षा रखती है।


 

Niyati Bhandari

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