श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान: अर्जुन करुणा से अभिभूत हो गए

Sunday, May 17, 2020 - 11:41 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता 
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का
उदाहरण भगवदगीता

तान्यमीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्ध्‌वस्थितान ।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत ॥

अनुवाद: जब कुती पुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गए। और इस प्रकार बोले:

अर्जुन उवाच
दुष्धेमं स्वजन कृष्ण युयुत्युं समुपस्थितम्‌।
सीदन्ति गम यात्राणि मुख च परिशुष्यति

अनुवाद
अर्जुन ने कहा : हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूखा जा रहा है।

तात्पर्य : यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में वे सारे सदगुण रहते हैं जो सत्पुरुषों या देवताओं में पाए जाते हैं जबकि अभक्त अपनी शिक्षा तथा संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना  ही उन्नत क्यों न हो इन ईश्वरीय गुणों से। आप विहीन होता है।
अतः स्वजनों, मित्रों तथा संबंधियों  को युद्धभूमि में देखते ही अर्जुन उन सब के लिए करूणा से अभिभूत हो गए जिन्होंने परस्पर युद्ध करने का निश्चय किया था। जहां तक उनके अपने सैनिकों का संबंध था, वह उनके प्रति प्रारंभ से दयालु थे परंतु विपक्षी दल के सैनिकों को आसन्न मृत्यु को देखकर वह उन पर भी दया का अनुभव कर रहे थे और जब वह इस प्रकार सोच रहे थे तो उनके अंगों मे कंपन होने लगा और मुंह सूख गया।

उन सबको युद्धाभिमुख देखकर उन्हें आश्चर्य भी हुआ। प्राय: सारा कुटम्ब, अर्जुन के सगे संबंधी उनसे युद्ध करने आए थे। यद्यपि इसका उल्लेख नहीं है किन्तु तो भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि न केवल उनके अंग कांप रहे थे और मुंह सूख रहा था अपितु वह दयावश रूदन भी कर रहे थे। अर्जुन में ऐसे लक्षण किसी दुर्बलता के कारण नहीं अपितु हृदय की कोमलता के कारण थे जो भगवान के शुद्ध भक्त का लक्षण है। (क्रमश: )

Jyoti

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