Shrimad Bhagwat geeta: माया से मोहग्रस्त व्यक्ति भी कर सकते हैं अच्छे कार्य

Tuesday, Jun 28, 2022 - 03:10 PM (IST)

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वर्तमान समय की बात करें ऐसा कोई जीव नहीं होगा जो बिल्कुल मोह माया के बिना हो। प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी चीज़ का मोह उसकी भागदौड़ करवाता है। कई धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि मोह चाहे किसी का भी हो अच्छा नहीं होता। कहा जाता है जो व्यक्ति अधिक मोह करता है वह अपने जीवन में काफी दुख पाता है। इतना ही नहीं माया से मोहग्रस्त व्यक्ति कभी कभी जीवन में गलत कार्य भी कर लेता है। बल्कि कहा जाता है मोहग्रस्त व्यक्ति जीवन में हमेशा गलत फैसले ही लेता है, और अंत में बुरे कार्यों में लग जाता है। परंतु क्या आप जानते हैं श्रीमद्भागत गीता में श्री कृष्ण ने बताया है कि माया से मोहग्रस्त व्यक्ति भी अच्छे कार्य कर सकता है। जी हां, श्रीमद्भागवत गीता में इससे संबंधित एक श्लोक भी वर्णित है जिसमें इस संदर्भ में बताया गया है। तो आइए जानते हैं क्या है ये श्लोक-

श्रीमद्भागवत गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवदगीता


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श्रीमद्भागवत श्लोक- 

प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्।।29।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : माया के गुणों से मोहग्रस्त होने पर अज्ञानी पुरुष पूर्णतया भौतिक कार्यों में संलग्न रहकर उनमें आसक्त हो जाते हैं। यद्यपि उनके ये कार्य उनमें ज्ञानाभाव के कारण अधम होते हैं, किन्तु ज्ञानी को चाहिए कि उन्हें विचलित न करें। अज्ञानी मनुष्य शरीर को आत्मस्वरूप मानते हैं, वे अन्यों के साथ शारीरिक संबंध को बंधुत्व मानते हैं, जिस देश में यह शरीर प्राप्त हुआ है उसे वे पूज्य मानते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों की औपचारिकताओं को ही अपना लक्ष्य मानते हैं। ऐसे भौतिकताग्रस्त पुरुषों के कुछ प्रकार के कार्यों में सामाजिक सेवा, राष्ट्रीयता तथा परोपकार हैं।
ऐसी उपाधियों के चक्कर में वे सदैव भौतिक क्षेत्र में व्यस्त रहते हैं, उनके लिए आध्यात्मिक बोध मिथ्या है, अत: वे इसमें रुचि नहीं लेते किन्तु जो लोग आध्यात्मिक जीवन में जागरूक हैं, उन्हें चाहिए कि इस तरह भौतिकता में मग्न व्यक्तियों को बदलने का प्रयास न करें। अच्छा होगा कि वे अपने आध्यात्मिक कार्यों को शांत भाव से करें। ऐसे मोहग्रस्त व्यक्ति हिंसा जैसे जीवन के मूलभूत नैतिक सिद्धांतों तथा इसी प्रकार के परोपकारी कार्यों में लगे हो सकते हैं।

जो लोग अज्ञानी हैं वे कृष्णभावनामृत के कार्यों को समझ नहीं पाते, अत: भगवान कृष्ण हमें उपदेश देते हैं कि ऐसे लोगों को प्रभावित न किया जाए और व्यर्थ ही मूल्यवान समय नष्ट न किया जाए किन्तु भगवद् भक्त भगवान से भी अधिक दयालु होते हैं, क्योंकि वे भगवान के अभिप्राय को समझते हैं।      

Jyoti

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