श्रीमद्भागवत गीता- संन्यास आश्रम है कष्ट साध्य
punjabkesari.in Monday, Dec 07, 2020 - 05:25 PM (IST)

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श्रीमद्भागवत गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
अध्याय 1
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवदगीता
‘संन्यास आश्रम है कष्ट साध्य’
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।
अनुवाद एवं तात्पर्य : हे पुरुषश्रेष्ठ (अर्जुन)! जो पुरुष सुख तथा दुख से विचलित नहीं होता और इन दोनों में समान रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है।
जो व्यक्ति आध्यात्मिक साक्षात्कार की उच्च अवस्था प्राप्त करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा है और सुख तथा दुख के प्रहारों को समभाव से सह सकता है वह निश्चत ही मुक्ति के योग है। वर्णाश्रम धर्म में चौथी अवस्था अर्थात संन्यास आश्रम कष्टसाध्य अवस्था है किन्तु जो अपने जीवन को सचमुच पूर्ण बनाना चाहता है वह समस्त कठिनाइयों के होते हुए भी संन्यास आश्रम अवश्य ग्रहण करता है।
ये कठिनाइयां पारिवारिक संबंध विच्छेद करने तथा पत्नी और संतान से संबंध तोडऩे के कारण उत्पन्न होती हैं किन्तु यदि कोई इन कठिनाइयों को सह लेता है तो उसके आध्यात्मिक साक्षात्कार का पथ निष्कंटक हो जाता है। अत: अर्जुन को क्षत्रिय-धर्म निर्वाह में दृढ़ रहने के लिए कहा जा रहा है भले ही स्वजनों या अन्य प्रिय व्यक्तियों के साथ युद्ध करना कितना ही दुष्कर क्यों न हो। (क्रमश:)