कल की रात, करेगी नोटोें की बरसात

Monday, May 14, 2018 - 09:46 AM (IST)

सभी तिथि, वार, नक्षत्र, पर्व त्यौहार की उत्पत्ति ज्योतिष शास्त्र की ही देन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य की गति चालन से ही विभिन्न योग संयोग बनते हैं इसलिए ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ज्योतिष अधिपतये नम: कहा गया है। सूर्य सब ग्रहों का राजा है और उसकी रथ यात्रा एक राशि में संक्रांति के आधार पर एक मास में पूरी कर ली जाती है। सूर्य नारायण सम्पूर्ण बारह राशियों को एक वर्ष में पूरा कर लेते हैं, वही  चंद्रमा है जो सवा दो दिन में एक राशि की यात्रा को पूरी करता है, जब सूर्य और चंद्र आमने-सामने होते हैं तो पूर्णिमा तिथि उनके मिलन की प्यास को बढ़ा देती है लेकिन सूर्य चंद्रमा जब एक राशि में प्रवेश कर जाते हैं तो उनका मिलन अंधेरे की अमावस्या को सामने ला देता है और यही अमावस्या मानव मात्र को अनेक पुण्य फल प्रदान करती है। क्योंकि चंद्रमा इस दिन शून्य डिग्री पर होता है और शास्त्रों में कहा गया है कि चंद्रमा मन के ऊपर प्रभाव डालता है।


श्री वट सावित्री व्रत पूजन का बहुत ही महत्व है। बरगद (वट वृक्ष) जिसका कोई अंत न हो, दीर्घायु एवं अनंत सुखों का प्रतीक है। इस पर्व पर बरगद, पीपल की पूजा करने से सौभाग्य, धन एवं सुख समृद्धि मिलती है। 15 मई मंगलवार को चारों पर्व वृष राशि सूर्य संक्रांति, भौमवती अमावस्या (वट सावित्री व्रत पूजन) शनि जयंती एवं पुरुषोत्तम माह (अधिक ज्येष्ठ माह जो 16 मई से 13 जून तक रहेगा) हैं। 


जिस चांद माह में सूर्य संक्रांति का अभाव हो उसे मलमाह या पुरुषोत्तम माह कहते हैं जिसमें शुभ कार्य नहीं होते जैसे विवाह, नवगृह प्रवेश आदि, सिर्फ पितृ तरयण, गजछाया यानी किसी प्राणी की मृत्यु मलमाह में हो तो उसका श्राद्ध, कालसर्प पूजन आदि भगवान विष्णु सहस्त्रपाठ करने से सब दोषों का निवारण होता है। 


भौमवती अमावस्या को शास्त्रों ने ऋणहर्ता कहा है। यदि मनुष्य के ऊपर विभिन्न प्रकार का कर्ज है तो इसमें स्नान, दान, ध्यान करने से मनुष्य ऋण से मुक्त होकर भूमि, भवन, वाहन तथा रक्त आदि की बीमारियों से मुक्त हो जाता है। इस दिन पीपल पूजन व 108 बार परिक्रमा करने से ऋण उतर जाता है एवं शरीर स्वस्थ रहता है। 

Niyati Bhandari

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