Shri Ram Mandir Ayodhya: प्राचीनकाल में कुछ ऐसा था ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी श्री अयोध्या धाम का स्वरुप

punjabkesari.in Monday, Nov 17, 2025 - 11:22 AM (IST)

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Ayodhya Shri Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra: मर्यादा पुरुषोत्तम रघुकुल शिरोमणि इक्ष्वाकु वंशज भगवान श्री रामचंद्र जी की जन्मस्थली और लीलास्थली के रूप में सप्त पुरियों में विशेष स्थान रखने वाली अयोध्या एक पावन नगरी ही नहीं, अपितु त्रेतायुग से भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इसके पौराणिक गौरवमयी इतिहास का विशेष केंद्र है। इसका प्राचीन नाम साकेत भी है, जिसका उल्लेख विभिन्न ग्रंथों और विश्व के अनेकों साहित्यों और महाकाव्यों में भी किया गया है। रघुवंशी राजाओं के पराक्रम और अजेय होने के कारण भी इसे अयोध्या नाम दिया गया।

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तिब्बत में मानसरोवर से उद्गम होकर निकलती सरयू की पावन धारा इस नगरी को और भी आध्यात्मिक महत्व प्रदान करती है तथा इसके चारों ओर का रमणीय मनमोहक वातावरण हर राम भक्त को अपनी ओर आकर्षित करता है, जिससे सहस ही मन इसके दर्शनों को लालायित हो उठता है। करीब 2522 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैली अयोध्या को यहां पर शासन करने वाले नवाबों ने अवध रियासत के तौर पर बनाया तथा इसे फैजाबाद नाम भी दिया, परंतु 2018 ई. में प्रदेश सरकार ने इसका नामकरण अयोध्या धाम के रूप में कर दिया। अंग्रेजों ने अपने शासन दौरान यहां पर अयोध्या छावनी भी बनाई, जो आधुनिक समय में अयोध्या कैंट के रूप में स्थापित है तथा 1857 में यहां पर भी विद्रोह की चिंगारी अंग्रेजों के विरुद्ध भड़की थी।

अयोध्या धाम की बात हो और प्रभु श्री राम और उनके कुल परिवार और लीलास्थलों का वर्णन न हो तो इसका आनंद अधूरा है। चक्रवर्ती सम्राटों और अजेय शासकों, जिनका उद्भव सूर्यकुल से माना जाता है, ने अपनी र्कीत और यश से अपनी विजय पताका सर्वत्र फैलाई, जिसमें प्रभु श्री राम के पूर्वज महाराज रघु, दिलीप, मान्धाता, अज और इनके पिता दशरथ, जोकि चक्रवर्ती सम्राट थे, शामिल हैं। सम्राट दशरथ का महल यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख है तथा इसके पास ही कनक महल भी अपने सुंदर रूप में अभी भी विद्यमान है, जिसे महारानी कौशल्या ने अपनी बहू माता सीता को मुंह दिखाई रस्म में भेंट किया था।

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इन स्थलों पर ही प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न अपनी युवावस्था तक रहे और पिता के साथ राजकाज संभालते थे। ये सभी दर्शनीय स्थल सभी को आत्मविभोर कर देते हैं, जहां पर नित्य श्री रामचरितमानस की चौपाइयों का पाठ-कीर्तन होता है तथा मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। माता अंजना की गोद में बैठे बाल्य रूप हनुमान जी महाराज के ऐसे दुर्लभ दर्शन करने हों तो हनुमानगढ़ी यहां का प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है, जहां पर प्रभु भक्त श्री रामलला के दर्शनों से पहले माथा टेकते हैं और बजरंग बली का आशीर्वाद मांगते हैं। यहां पर भी अक्सर श्री राम लला के दर्शनों की भांति ही भारी भीड़ रहती है तथा प्रभु श्री राम और उनके परम सेवक हनुमान का जयघोष नित्य प्रति होता है।

यहां के अवध निवासियों से इस अयोध्या धाम पुरी का इतिहास जानने की कोशिश की गई तो पता चलता है कि यहां पर 6000 से भी अधिक स्थान प्रभु श्री राम और उनके लीला स्थलों के रूप में विद्यमान हैं, जिनका जीर्णोद्धार तथा विकास किया जा रहा है, जिन्हें मूल रूप से संरक्षित कर श्रद्धालुओं के लिए दर्शनीय स्थलों के रूप में विकसित किया जाएगा, ताकि आने-जाने वाले प्रभु श्री राम भक्त भव्य और आलौकिक श्री राम के दर्शन कर साथ ऐसे स्थानों का भ्रमण कर इन्हें भी आत्मसात कर सकें तथा पर्यटन और अधिक विकसित हो सके।

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भव्य रूप में निर्मित अयोध्या धाम हवाई अड्डा से अयोध्या धाम की दूरी 15 कि.मी. तथा ऐसे ही समस्त सुविधाओं से लैस अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी मात्र 1 कि.मी. से भी कम ही बैठती है और इसके आसपास का धार्मिकता से ओत-प्रोत वातावरण तथा रात को इसकी रंग-बिरंगी लाइटों से की गई सजावट बहुत ही अलौकिक दृश्य प्रदान करती है।

प्रभु श्री राम के सुपुत्र कुश द्वारा निर्मित नागेश्वर नाथ मंदिर भी अयोध्या की खूबसूरती को और चार-चांद लगा देता है, जहां पर नागेश्वर नाथ के रूप में विद्यमान भगवान शिव अत्यंत मनमोहक दर्शन देते हैं। प्रभु श्री राम के पूर्वज राजा मान्धाता का गांव भी अयोध्या से कुछ कि.मी. की दूरी पर ही स्थित है, जहां पर उनका ऐतिहासिक मंदिर मौजूद है। अयोध्या धाम की तरह ही यहां पर भी मौजूद सरयू नदी का महत्व है तथा इसके तट पर नित्य सांझ-सवेरे होती आरती श्रद्धालुओं के लिए विशेष श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र रहती है।

प्रत्येक वर्ष दीवाली पर अयोध्या की अलौकिक छटा बिखरती है, जिसे देखकर मानो पूरा विश्व रोमांचित हो उठता है तथा सरयू नदी के तट पर और उसके आसपास के क्षेत्रों में लाखों दीपक जगाकर अभी भी प्रभु श्री राम का वापस अयोध्या लौटने का भव्य और विहंगम दृश्य वैसे ही दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जो हमें उसी त्रेतायुग में ले जाता है, जब प्रभु श्री राम और उनकी लंका विजय के बाद अयोध्या आगमन पर हुआ होगा।   

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Content Writer

Niyati Bhandari