हकीकत या फसाना: एक ही हैं श्रीराम और श्रीकृष्ण

Saturday, May 09, 2020 - 08:13 AM (IST)

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सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र एवं समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले भगवान माने गए हैं। सनातन संस्कृति में श्रीराम और श्रीकृष्ण महानायक हैं। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो श्रीकृष्ण योगेश्वर। श्रीकृष्ण व्यक्ति नहीं वरन सद्प्रवृत्तियों के आदर्श के रूप में हमारे सम्मुख हैं। वह हर विपरीत घड़ी में हमारे सामने आदर्श के रूप में उपस्थित होते हैं। जब-जब इस धरती पर असुरों एवं राक्षसों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी को पापमुक्त करते हैं।



भगवान विष्णु ने अभी तक चौबीस अवतारों को धारण किया है। उनके बीस अवतारों का पुराण में विस्तृत वर्णन है ही, जबकि विष्णु जी के इक्कीसवें और बाइसवें अवतार को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यह है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का अवतार।

विष्णु जी के इक्कीसवें अवतार हैं भगवान श्रीराम। वैसे भगवान विष्णु के दस अवतार मानने वालों के आधार पर भगवान श्रीराम विष्णु जी के 10 अवतारों में से सातवें हैं। श्रीराम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। शोध तथा प्लेनिटेरियम सॉफ्टवेयर के अनुसार श्रीराम का जन्म 4 दिसम्बर 7,393 ई. पूर्व हुआ था, यह गणना हिन्दू कालगणना से मेल खाती है। भगवान श्रीराम बचपन से ही शांत स्वभाव के वीर पुरुष थे। उन्होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम से जाना जाता है।



त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवनयापन किया।

पिता के कहने पर वनवास गए। वनवास के समय रावण ने सीता जी का हरण किया था। उसने इसके लिए मामा मारीच का सहारा लिया। सीता जी को खोजने के लिए भगवान श्रीराम हनुमान और वानर सेना को साथ लेकर लंका पहुंचे। वहां उन्होंने रावण से घोर युद्ध किया जिसमें रावण मारा गया और उसके सभी बंधु-बांधवों और वंशजों का भी अंत हुआ। इस प्रकार भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार लेकर देवताओं को राक्षसों के भय से मुक्त किया।



द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में बाइसवां अवतार लिया। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। यह अवतार उन्होंने वैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठाइसवें द्वापर में देवकी के गर्भ से कंस के कारागार में लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में भी अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया।

संपूर्ण पृथ्वी दुष्टों एवं पतितों के भार से पीड़ित थी। उस समय धर्म, यज्ञ, दया पर राक्षसों एवं दानवों द्वारा आघात पहुंचाया जा रहा था। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। उन्होंने कर्मव्यवस्था को सर्वोपरि माना, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को कर्मज्ञान देते हुए उन्होंने गीता की रचना की जो कलिकाल में धर्म में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।

धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का यह अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।



पुराणों में भगवान श्रीराम का रंग नीला (नील वर्ण), तो श्रीकृष्ण का काला बताया गया है। रंगों के इस भेद के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल, भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। यह अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। श्रीराम और श्रीकृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं।

श्रीराम का जन्म दिन में हुआ था। दिन के समय का आकाश का रंग नीला होता है। इसी तरह श्रीकृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था और रात के समय आकाश का रंग काला प्रतीत होता है। दोनों के रंग को प्रतीकात्मक तरीके से दर्शन के लिए पुराणों में उन्हें काले और नीले रंग का बताया गया है।

श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं है। इनमें भिन्नता स्थापित करना अथवा इन्हें भिन्न मानना सनातन धर्म के प्रतिकूल हैं। दोनों अभिन्न हैं।

Niyati Bhandari

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