माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर
punjabkesari.in Saturday, Jul 06, 2024 - 02:41 PM (IST)
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राजस्थान की शान जोधपुर शहर अपनी बेमिसाल हवेलियों की भवन निर्माण कला, मूर्ति कला तथा वास्तु शैली के लिए दूर-दूर तक विख्यात है। इसी शहर में 400 फुट ऊंचे शैल के पठार पर स्थित है भारत के सबसे विशाल किलों में से एक मेहरानगढ़ का भव्य किला। यह किला जहां वर्तमान नरेश महाराजा गजसिंह के राज-परिवार का निवास है, वहीं इसी किले में भव्यता का प्रतीक एक म्यूजियम तथा आदिशक्ति मां जगदम्बा का प्राचीन मान्यता प्राप्त श्री चामुंडा देवी मंदिर भी स्थित है, जो किले के दक्षिणी भाग में सबसे ऊंची प्राचीर पर है। श्री चामुंडा मंदिर जोधपुर के महाराजाओं का तो ईष्ट देवी मंदिर है ही, लगभग सारा जोधपुर शहर ही इस मंदिर में देवी को अपनी ईष्ट अथवा कुल देवी मानता है।
इस मंदिर में देवी की मूर्ति 1460 ई. में मंडोर के तत्कालीन राजपूत शासक राव जोधा, जो कि चामुंडा देवी का एक परम भक्त था, द्वारा अपनी नवनिर्मित राजधानी जोधपुर में बनाए गए इस भव्य किले में स्थापित की गई। किले की छत पर विराजमान यह मंदिर मूर्ति कला तथा भवन निर्माण कला की एक अनूठी मिसाल है, जहां से सारे शहर का विहंगम दृश्य नजर आता है। मेहरानगढ़ किले में प्रवेश मार्ग से सूर्य की आभा का आभास देता श्री चामुंडा देवी मंदिर का मार्ग मूर्ति कला में राजपूताना शान की मिसाल तो है ही, किले में सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर में देवी बैठी मुद्रा की बजाय चलने की मुद्रा में नजर आती हैं।
शत्रुओं से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली देवी का यह रौद्र रूप है, जो उनके भक्तों की सांसारिक शत्रुओं से रक्षा के साथ-साथ उनके भौतिक (शारीरिक) दुखों तथा मानसिक त्रासदियों को दूर करके उनमें आत्मविश्वास एवं वीरता का संचार कर जीवन को दिशा प्रदान करता है।
श्री मत्स्य पुराण तथा श्री मार्कण्डेय पुराण आदि में भगवती चामुंडा का वर्णन है। महाभारत के वन पर्व तथा श्री विष्णु धर्मोतर पुराण में भी माता की स्तुति की गई है।
एक पौराणिक मान्यतानुसार, देवासुर संग्राम में जब आदिशिवा ने राक्षस सेनापति चंड तथा मुंड नामक दो शक्तिशाली असुरों का वध कर दिया तो मां दुर्गा द्वारा देवी के इस ‘शत्रु-नाशिनी’ रूप को चामुंडा का नाम दिया गया। जैन धर्म में भी देवी चामुंडा को मान्यता प्राप्त है तथा मां का यह रूप पूर्णत: सात्विक रूप में पूजा जाता है।