अचलेश्वर महादेव मंदिर में लगा श्रावण के प्रथम सोमवार श्रद्धालुओं का आवागमन

Tuesday, Jul 19, 2022 - 12:38 PM (IST)

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ग्वालियर में सावन के पहले सोमवार के दिन भोलेनाथ के दर्शनों के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ दिखाई दी। हर कोई इस दिन अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर लेना चाहता था। वैसे तो  शहर के सभी शिव मंदिरों पर भक्तों की भीड़ उमड़ दिखाई दी, लेकिन खासतौर पर शहर के प्राचीन अचलेश्वर महादेव मंदिर पर देर रात 12 बजे से ही भक्त भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए कतारों में लगे रहे हैं और अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए। भक्तों की ओर से भगवान भोलेनाथ की  विशेष पूजा अर्चना की गई ताकि उनकी मनोकामनाएं पूरी हो सके। श्रावण के पहले सोमवार इस खास दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की जल, बेलपत्र, फूल मालाएं, व दूध चढ़ाकर अभिषेक करते और भगवान से अपने परिवार के लिए मन्नते मांगते नजर आए।

यहां जानें क्या है अचलेश्वर महादेव मंदिर की खासियत- 
यूं तो देश में भगवान शिव के देश में अगिनत मंदिर हैं जिनकी अपनी अपनी खासियत है, और यही खासियत इनकी प्रसिद्ध को न केवल देश में बल्कि विदेशों में प्रख्यात करती है। बात करें अचलेश्वर महादेव मंदिर की तो इसकी बात अन्य शिव मंदिरों से निराली है। दरअसल इस मंदिर को लेकर मान्यता प्रचलित है इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जिसे हटाने के लिए प्राचीन समय में बड़े से बड़े राजा महाराजाओं ने अपनो जोर अजमाया परंतु कोई इस शिवलिंग को टस से मस नहीं कर पाया। बताया जाता है कि उस समय में राजाओं-महाराजाओं न कई हाथियों से इस शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया लेकिन हाथियों का बल भी शिवलिंग के आगे बेकार हो गया। इसके अलावा जब इस शिवलिंग को खोदकर निकालने की कोशिश की गई खोदने के बाद पानी तो निकल गया, लेकिन अचलेश्वर महादेव के शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला। बता दें ग्वालियर के बीच चौराहे पर स्थित भगवान शिव के इस अद्भुत शिवलिंग को लोग अचलनाथ के नाम से भी पुकारते हैं। 

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श्री अचलेश्वर मंदिर नगर के मध्य में बीएसएनएल ऑफिस के पास स्थित हैं। मंदिर के साथ-साथ शहर अचलनाथ की भी अपनी मान्यता है। यहां आसपास के भक्तों के अलावा श्रावण मास के दौरान व महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अचलेश्वर महादेव के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर को लेकर नगर में किवदंती प्रचलित हैं जिसकी अनुसार 750 साल पहले पीपल पेड़ को काटने पर इस शिवलिंग का प्रकाट्य हुआ और मार्ग के बीच स्थापित हो गया। तत्कालीन सिंधिया राजपरिवार ने इस शिवलिंग को बीच रास्ते से किनारे स्थापित करने के लिए हटाने का प्रयास किया। परंतु हर कोई ऐसा करने में नाकाम हुआ तो शिवलिंग को जंजीरों से बांधकर हाथियों से खींचवाने का प्रयास किया। परंतु हाथियों को शिवलिंग खीचने में पसीना आ गया। ऐसा माना जाता है इस घटना के बाद से यहां शिव जी के इस शिवलिंग रूप को अचलनाथ (श्रीअचलेश्वर) नाम से जाना जाने लगा। उसके बाद राजपरिवार ने यहां मंदिर का निर्माण कराया, बता दें मंदिर में शिव जी अपने परिवार के साथ विराजमान हैं।

मंदिर की विशेषता की बात करें तो वर्तमान समय में  ढाई करोड़ से अधिक की लागत से मंदिर का जीणोद्धार करवाया गया है। प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर  एक लाख से अधिक श्रद्धालु यहां अचलेश्वर महादेव के दर्शनों के लिए आते हैं। तो वहीं श्रावण मास में खासतौर पर श्रावण के प्रति सोमवार भी श्रद्धालु यहां काफी संख्या में दर्शन करने के लिए पहुंचते है।

 

Jyoti

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