राजस्थान के इस मंदिर में देवी करती हैं ‘ज्वालाओं से अग्नि स्नान’

Saturday, Oct 29, 2022 - 01:43 PM (IST)

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हमारे देश में हिंदू धर्म से जुड़े अनेकों धार्मिक स्थान है। कुछ प्राचीन हैं तो कुछ रहस्यमयी। आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में ऐसे ही दो मंदिरों के बार में बताने जा रहे हैं जो प्राचीन तो है ही साथ ही साथ बेहद रहस्यमयी है। बता दें इन दो मंदिरों में जहां एक मंदिर देवी ईडाणा को समर्पित है जहां माता ज्वालाओं से अग्नि सन्ना करते हैं तो वहीं दूसरा मंदिर है कानपुर में जहां भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। तो चलिए जानते हैं इन दोनों बेहद रहस्यमयी मंदिर के बारे में- 

राजस्थान के खूबसूरत उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर की दूरी पर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है मेवाड़ का प्रमुख शक्तिपीठ ईडाणा माता जी का मंदिर। ईडाणा माता राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य मां हैं। यहां देवी प्रतिमा माह में दो से तीन बार स्वत: जागृत अग्नि से स्नान करती हैं। इस अग्नि स्नान से देवी को चढ़ाई गई चुनरियां, धागे आदि भस्म हो जाते हैं। कहा जाता है कि इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया। मान्यता है कि वर्षों पूर्व यहां कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे।

बाद में धीरे-धीरे पड़ोसी गांव के लोग यहां आने लगे जिनकी मन्नत पूरी होती चली गई। मंदिर में मां की प्रतिमा के पीछे अनगिनत त्रिशूल लगे हैं। श्रद्धालु यहां अपनी मन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते हैं। साथ ही संतान की मन्नत रखने वाले दम्पतियों द्वारा पुत्र प्राप्ति पर यहां झूला चढ़ाने की भी परम्परा है। मान्यता के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। इस दौरान स्थानक पर अचानक आग धधकने लगती है। देखते ही देखते विकराल रूप धारण कर 10 से 20 फुट तक अग्नि की लपटें पहुंच जाती हैं मगर शृंगार की अन्य सामग्री को कोई आंच तक नहीं आती।

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बारिश की सूचना देने वाला जगन्नाथ मंदिर
उत्तर प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक नगर कानपुर के भीतरगांव विकासखंड से 3 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है बेहटा। यहीं पर स्थित है एक अनूठा मंदिर जहां धूप में छत से पानी की बूंदें टपकने लगती हैं और बारिश में छत से रिसाव बंद हो जाता है। यह भगवान जगन्नाथ का अति प्राचीन मंदिर है। लोग बताते हैं कि बारिश होने से छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदें टपकने लगती हैं। जिस आकार की बूंदें टपकती हैं, उसी तरह से बारिश होती है। 

लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं। इससे भी अधिक हैरान करने वाली बात है कि जैसे ही बारिश शुरू होती है, छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है। मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की तरह है। इसकी दीवारें 14 फुट मोटी हैं जिससे इसके सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। मंदिर के बाहर मोर का निशान व चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में बने होने के कयास भी लगाए जाते हैं। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ व सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं।

Jyoti

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