नवरात्रि 2020: महिलाओं के लिए माता के व्रत से जुड़ी ये बात जानना है बेहद ज़रूरी

Sunday, Mar 15, 2020 - 02:49 PM (IST)

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नवरात्रि यानि नौ रातें, जो हिंदू धर्म की देवी मां दुर्गा को समर्पित हैं। शिवरात्रि, जन्माष्टमी आदि जैसे नवरात्रि को भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार का दर्जा प्राप्त है। बल्कि देश के कई हिस्सों में इस दौरान बड़े बड़े आयोजन होते हैं। जिस दौरान माता रानी के भक्त मां की पूजा तो करते हैं साथ ही साथ पूरी पूरी रात्रि जागरण करते हैं एवं मां के भजनों आदि पर झूमते हैं और इनका आवाह्नन करते हैं। कहा जाता है इस दौरान कोई भी मां की पूजा कर सकता है उन्हें खुश कर सकता है। मगर एक सवाल है जो हर महिला के मन में रहता है कि मासिक धर्म के दौरान माता रानी की पूजा करना शुभ होता है या अशुभ। 

नौ दिनों का ये पर्व ध्यान, साधना, जप और पूजन द्वारा आत्मिक शक्ति के विकास के लिए प्रख्यात है। परंतु एक स्त्री के साथ अधिक संभावना ये होती है 28 से 32 दिनों के मध्य घटित होने वाला उसका मासिक धर्म इन नौ दिनों में ही घटित हो जाए। जिस दौरान ये प्रश्न उन्हें परेशान करता है कि क्या मासिक धर्म के दरमियान पूजा या उपासना संभव है या नहीं। अगर आप भी इसका उत्तर पाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पूजन और उपासना के अर्थ व प्रकार को समझना होगा। 

काफ़ी लोगों को मानना है कि पूजा और उपासना एक समान हैं। जबकि असल में मनुष्य के द्वारा परमात्मा के अभिवादन को पूजा कहा जाता है। तो वहीं उपासना का अर्थ है उप-आसना, यानि स्वयं के समक्ष वास करना। आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार हमारे यानि मनुष्य के स्वयं में ही प्रभु का वास है। कर्मकांडीय पूजन में सूक्ष्म और स्थूल दोनों उपक्रमों को बराबर-बराबर समाहित किया गया है। लिहाज़ा, कर्मकांडीय-पूजा ध्यान, आह्वान, आसन, पाद्य, अर्घ्य और आचमन में पिरोई हुई दृष्टिगोचर होती है।

ध्यान और आह्वान सूक्ष्म या मानसिक होते हैं और उसके बाद की पद्धति स्थूल पदार्थों से सम्पादित होती है। पर वहां भी भाव मुख्य सूत्रधार है। बिना भाव के किसी पूजन का कोई अर्थ नहीं है। स्थूल पूजन कई उपचारों में गूंथा हुआ है। यदा, पंचोपचार (5 प्रकार), दशोपचार (10 प्रकार), षोडशोपचार (16 प्रकार), द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार), एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार) इत्यादि, जिसमें अपने प्रभु की सूक्ष्म उपस्थिति को मानकर स्थापन, स्नान, अर्घ्य, वस्त्र, श्रृंगार, नैवेद्य, सुगंध , इत्यादि अर्पित कर उनका अभिनंदन करते हैं। स्तुति, प्रार्थना, निवेदन, मंत्र, भजन और आरती द्वारा उनकी कृपा की कामना करते हैं। ध्यान रहे कि यहां भाव मुख्य अवयव है। भाव दैहिक नहीं, आत्मिक और मानसिक है।

महान विद्वानों के अनुसार जिस प्रकार आप कभी भी अपने प्रेम, क्रोध और घृणा को प्रकट कर सकते हैं,  अपने मस्तिष्क में शुभ-अशुभ विचार ला सकते हैं,  कभी भी अपनी जुबान से कड़वे या मीठे वचन बोल सकते हैं, उसी प्रकार आप कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में प्रभु का ध्यान, उनका चिंतन, उनका स्मरण, उनका सुमिरन या मानसिक जप कर सकते हैं।

हां! परंपराएं और कर्मकांड मासिक धर्म में स्थूल उपक्रम यानि, देव प्रतिमा के स्पर्श, स्थूल पूजन और मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की सलाह नहीं देती हैं। अगर हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, द्वेष इत्यादि को मासिक धर्म के दौरान अंगीकार कर सकते हैं, तो भला शुभ चिंतन और सुमिरन में क्या आपत्ति है। निश्चित तौर पर मासिक धर्म के दौरान महिलाएं माता का व्रत रख सकती हैं। लेकिन मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए इस बीच स्थूल पूजन यानि देवी-देवताओं का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस दौरान व्रत रखकर मानसिक जप और पूजन करने में कोई दिक्कत नहीं है।

Jyoti

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