शिव जी के इस 2800 साल पुराने मंदिर में त्रिशूल की पूजा करना है अनिवार्य!

Thursday, Apr 08, 2021 - 03:47 PM (IST)

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हमारे देश में बहुत से धार्मिक स्थल हैं, इनमें से अधिकतर मंदिर शिव मंदिर हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। जहां एक खंडित त्रिशूल तक की पूजा होता है। जी हां, सुनने में आपको यकीनन अजीब लग रहा होगा, क्योंकि सनातन धर्म में किसी भी तरह की खंडित वस्तु को पूजना शुभ नहीं माना जाता। बल्कि मान्यताओं के अनुसार खंडित वस्तु को हमेशा किसी नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है या किसी पेड़ आदि के नीचे रख दिया जाता है। तो फिर आखिर इस मंदिर में ऐसा करने के पीछे का क्या कारण है? 
अगर आप भी इस मंदिर से जुड़ा रहस्य जानना चाहते हैं तो आगे दी गई जानकारी को अच्छे से पढ़िए-

दरअसल जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं, वो जम्मू से लगभग 120 कि.मी दूर पटनीटॉप के पास स्थित है, जिसे सुध महादेव नामक मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है इस मंदिर में विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े जमीन में गड़े हुए हैं। लोक मान्यता है इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2800 वर्ष पहले हुआ था। त्रिशूल के अलावा इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग, नंदी की मूर्ति तथा शिव परिवरा की प्रतिमाएं स्थापित हैं। 

लोक मत ह सुध महादेव मंदिर से करीबन 5 कि.मी दूरी पर एक स्थान है जिसे मानतलाई के नाम से जाना जाता है। पुराणों में किए वर्णन के अनुसार माता पार्वती का जन्म इसी मानतलाई में हुआ था। माता पार्वती इस मंदिर में अक्सर भगवान शिव की पूजा करने जाया करती थीं। एक बार की बात है कि जब माता पार्वती पूजा करने के लिए मंदिर में आईं तो उनके पीछे सुधांत नाम का एक राक्षस भी मंदिर में पूजा करने के लिए आ गया, क्योंकि वह भी भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। 

पूजा करने के बाद जब माता पार्वती ने अपनी आखें खोलीं और राक्षस को देखा तो वह चीख पड़ीं। उनकी चीख को सुनकर भगवान शिव को लगा कि पार्वती जी संकट में हैं इसलिए भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उस राक्षस के ऊपर प्रहार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से सुधांत की मृत्यु हो गई लेकिन कुछ ही क्षण बाद भगवान शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और सुधांत को दुबारा जीवित करने के लिए कहा, लेकिन सुधांत अपने इष्टदेव के हाथों से मृत्यु पाकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता था। इस पर महादेव ने सुधांत से कहा कि आज से यह स्थान तुम्हारे नाम पर सुध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाएगा. तब से इस मंदिर का नाम सुध महादेव मंदिर पड़ गया। बताया जाता है भगवान शंकर के त्रिशूल के तीन टुकड़े उस समय से आज भी जमीन में गाड़े हुए हैं। 

Jyoti

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