जानें, कैसे हुई शिव तांडव स्तोत्र की रचना
Friday, Aug 09, 2019 - 01:43 PM (IST)
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हर किसी को क्रोध आना स्वाभाविक बात बन चुकी है। हर इंसान बात-बात पर गुस्सा दिखाता है और यह व्यक्ति का स्वभाव बन चुका है। गुस्से में इंसान कई बार ऐसे काम कर लेता है, जिसका उसे बाद में पछतावा होता है। कई लोग अपनी थोड़ी से योग्यता के अहंकार में आपका अपमान करते हैं। ज्यादातर लोग ऐसे मौकों पर अपना धैर्य खो देते हैं, और मामला विवाद तक पहुंच जाता है। ग्रंथों में भी क्रोध को लेकर बहुत सी बातों के बारे में बताया गया है। क्रोध के विषय से जुड़ी भगवान शिव और रंवण का एक प्रसंग है, जिसके बारे में आज हम आपको बातने जा रहे हैं।
कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण भगवान शिव का सबसे श्रेष्ठ भक्त बताया गया है। रावण ने शिव को अपना ईष्ट और गुरु दोनों माना था। एक दिन रावण के मन में आया कि मैं सोने की लंका में रहता हूं और मेरे आराध्य शिव कैलाश पर्वत पर। क्यों ना भगवान शिव को भी लंका में लाया जाए। ये सोचकर रावण कैलाश पर्वत की ओर निकल पड़ा। वो कई तरह के विचारों में डूबा हुआ कैलाश पर्वत की तलहटी में पहुंचा।
सामने से भगवान शिव के वाहन नंदी आ रहे थे। नंदी ने शिव भक्त रावण को प्रणाम किया। रावण ने अहंकार में कोई जवाब नहीं दिया। नंदी ने फिर उससे बात की तो रावण ने उसका अपमान कर दिया। उसने नंदी को बताया कि वो भगवान शिव को लंका लेकर जाने के लिए आया है। नंदी ने कहा, भगवान को कोई उनकी इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं ले जा सकता। रावण को अपने बल पर घमंड था। उसने कहा अगर भगवान शिव नहीं माने, तो वो पूरा कैलाश पर्वत ही उठाकर ले जाएगा।
इतना कह कर उसने कैलाश पर्वत को उठाने के लिए अपना हाथ एक चट्टान के नीचे रखा। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठे सब देख रहे थे। कैलाश हिलने लगा। सारे गण डर गए। लेकिन, भगवान शिव अविचलित बैठे रहे। जब रावण ने अपना पूरा हाथ कैलाश पर्वत की चट्टान के नीचे फंसा दिया तो भगवान ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे फंस गया। निकल नहीं पा रहा था। शिव अपने आसन पर निर्विकार बैठे मुस्कुरा रहे थे। तब रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। जिसे सुनकर शिव ने उसे मुक्त किया।