Shiva and Parvati's Strange Wedding- भगवान शिव की शादी में आए थे चुड़ैल-प्रेत और भूत-पिशाच, पढ़ें संसार के प्रथम प्रेम विवाह की सुंदर गाथा
punjabkesari.in Saturday, May 31, 2025 - 03:00 PM (IST)

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Shiva and Parvati's Strange Wedding- भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तप किया था। वे अपने पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की कन्या सती के रूप में अवतीर्ण हुई थीं। उस समय भी उन्हें भगवान शिव की प्रियतमा होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दक्ष यज्ञ में अपने पति भगवान शिव के अपमान से क्षुब्ध होकर योगाग्नि में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। समय पाकर हिमालय पत्नी मैना के गर्भ में प्रविष्ट हुईं और यथा समय उनका प्राकट्य हुआ। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण वह पार्वती कहलाईं। पार्वती ने भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए घोर तप किया। संसार का प्रथम प्रेम विवाह भगवान शिव और देवी पार्वती का हुआ था।
भगवान शंकर पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकौड़े व सारे जीव उनके विवाह में उपस्थित हुए। यहां तक कि विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे। ऐसा भी कहा जाता है की भगवान शिव की शादी में चुड़ैल-प्रेत और भूत-पिशाच खूब नाचे थे। एक तरफ भूत-पिशाच नाच रहे थें दूसरी तरफ पार्वती की माता मैना रानी भूत-पिशाच को देखकर बेसुध हो गई थी।
जब भगवान शंकर व पार्वती का विवाह होने वाला था, तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। उनका विवाह भव्य पैमाने पर हो रहा था। उनके विवाह में बड़े से बड़े व छोटे से छोटे लोग सम्मलित हुए। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर भी वहां पहुंचे। आमतौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे व जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे। उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। मगर यह तो भगवान शंकर का विवाह था इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक बार एक साथ आने का मन बनाया।
यह एक राजसिक विवाह था अतः विवाह समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था। वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। यह कुछ देर तक चलता रहा। आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर भगवान शंकर बैठे हुए थे। सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर भगवान शंकर के वंश के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा।
वधू का परिवार अचंभित था कि भगवान शंकर के परिवार में कोई ऐसा नहीं है जो खड़े होकर उनके वंश की महानता के बारे में बता सके ? मगर वाकई कोई नहीं था। वर के माता-पिता, रिश्तेदार या परिवार से कोई वहां नहीं आया था क्योंकि उनके परिवार में कोई था ही नहीं। वह सिर्फ अपने गणों के साथ आए थे।
पार्वती के पिता पर्वतराज ने भगवान शंकर से अनुरोध किया,"कृपया अपने वंश के बारे में कुछ बताइए।"
भगवान शंकर कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। वह न तो दुल्हन की ओर देख रहे थे, न ही विवाह को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर आ रहा था। वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे व शून्य में घूरते रहे। वधू पक्ष के लोग बार-बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी का विवाह ऐसे व्यक्ति से नहीं करना चाहेगा, जिसके वंश का अता-पता न हो। उन्हें जल्दी थी क्योंकि विवाह के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था मगर भगवान शंकर मौन रहे। भगवान शंकर कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे।
समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा व विप्र गण घृणा से भगवान शंकर की ओर देखने लगे व तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई," इसका वंश क्या है ? यह बोल क्यों नहीं रहा है ? इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म आ रही है।"
फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे, ने यह सब तमाशा देखकर अपनी वीणा उठाई व उसकी एक ही तार खींचते रहे। वह लगातार एक ही धुन बजाते रहे। इससे खीझकर पार्वती के पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे और बोले, "यह खिझाने वाला शोर क्यों कर रहे हैं? क्या यह कोई जवाब है?"
नारद ने जवाब दिया," वर के माता-पिता नहीं हैं।"
राजा ने पूछा," क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानते।"
नारद मुनी बोले, "नहीं, इनके माता-पिता ही नहीं हैं और नारद बोले कि इनकी कोई विरासत नहीं है। इनका कोई गोत्र नहीं है। इनके पास कुछ नहीं है। इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है।"
पूरी सभा चकरा गई। पर्वत राज ने कहा, " हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। मगर हर कोई किसी न किसी से जन्मा है। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता या मां ही न हो।"
नारद ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह स्वयंभू हैं। इन्होंने खुद की रचना की है। इनके न तो पिता हैं न माता। इनका न कोई वंश है, न परिवार। यह किसी परंपरा से संबंध नहीं रखते व न ही इनके पास कोई राज्य है। इनका न तो कोई गोत्र है व न कोई नक्षत्र। न कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। यह इन सब चीजों से परे हैं। यह एक योगी हैं व इन्होंने सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। ये किसी से उत्त्पन्न नहीं हुए हैं वरन सम्पूर्ण ब्रहमांड इन्ही से उत्पन्न हुआ है।"