Sawan 2021: शिव पुराण से जानें, भोलेनाथ के तीनों नेत्रों का रहस्य

Friday, Aug 13, 2021 - 11:02 AM (IST)

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Shiv Third Eye: देवी-देवताओं में से सिर्फ भोले नाथ ही त्रिनेत्रधारी हैं। उनके दो नेत्र साधारण को देखते हैं लेकिन तीसरा नेत्र बंद होने के बाद भी असाधारण को देखने की रहस्यमय शक्ति रखता है। प्रत्येक मनुष्य में इन आलौकिक शक्तियों का भंडार भरा पड़ा है। इन शक्तियों के बल पर वह सब कुछ कर सकता है। आवश्यकता है इन शक्तियों को जागृत करने और इनका सदुपयोग करने की।


शिव शक्ति एक-दूसरे के पर्याय हैं इसलिए शिव के तीनों नेत्र शिवा का ही प्रतीक हैं जो क्रमश:- गौरी के रूप में जीव को मातृत्व एवं स्नेह देते हैं। लक्ष्मी के रूप में उनका पालन पोषण करते हैं तथा काली के रूप में उसकी आंतरिक एवं बाहरी बुराइयों का नाश करते हैं। शिव के ललाट पर सुशोभित तीसरा नेत्र असल में मुक्ति का द्वार है जो शिव को स्वत: प्राप्त है लेकिन मनुष्य अज्ञान के चलते इसे अपने मस्तक पर देख नहीं पाता। यह तीसरा नेत्र दोनों नेत्रों के मध्य इसलिए है क्योंकि इस स्थान को सबसे पवित्र माना गया है। त्राटक के मद्य कुंडलिनी जागरण का भी विशेष महत्व है। यह स्थान सबसे ज्यादा ऊर्जावान है। इस स्थान पर विशेष दबाव अपना प्रभाव दिखाता है। दूसरी ओर शिव के अधखुले नेत्र व्यक्ति के हर कर्म के साक्षी हैं। गृहस्थ में रह कर भी शिव सृष्टि का नियंत्रण (सृजन, पालन तथा संहार) स्वतंत्र रूप में करते हैं। स्वयं पर नियंत्रण तथा अपने कर्मों का सही आकलन ही शिव के तीनों नेत्रों का रहस्य है।


शिवों भूत्वा शिव यजेतृ
शिव बन कर शिव की उपासना करें। भगवान शिव का एक नेत्र ब्रह्मा अर्थात सृजनकर्ता दूसरा विष्णु अर्थात पालनकर्ता तथा तीसरा स्वयं रुद्र रूप अर्थात संहारकर्ता है। अन्य प्रकार से देखें तो पहला नेत्र धरती, दूसरा आकाश और तीसरा नेत्र है बुद्धि के देव सूर्य की ज्योति से प्राप्त ज्ञान अग्रि का। यही ज्ञान जब खुला तो कामदेव भस्म हुआ अर्थात जब आप अपने ज्ञान और विवेक की आंख खोलते हैं तो कामदेव जैसी बुराई लालच, भ्रम, अहंकार आदि से स्वयं को दूर कर सकते हैं। इसके पीछे एक कथा भी है एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव के पीछे से जाकर उनकी दोनों आंखें अपनी हथेलियों से बंद कर दीं। इससे पूर्ण संसार में अंधकार हो गया क्योंकि भोले की एक आंख सूर्य, दूसरी चंद्रमा है।

अंधकार से संसार में हाहाकार मच गया। तब भगवान भोले नाथ ने अपनी तीसरी आंख खोल कर संसार में प्रकाश कर दिया। इस प्रकाश से हिमालय जलने लगा। यह सब देख कर पार्वती घबरा गईं। उन्होंने तुरंत अपनी हथेली शिव की आंखों से हटा दी तब शिव ने मुस्कुराकर अपनी तीसरी आंख बंद कर दी।

शिव पुराण के अनुसार इससे पहले स्वयं पार्वती जी को भी ज्ञान नहीं था कि भोले शिव के तीन नेत्र हैं। शिव का दायां नेत्र सूर्य के समान तेजस्वी है जिस प्रकार सूर्य में उत्पन्न करने की विशेष ऊर्जा है और वह पृथ्वी ही नहीं बल्कि अनेक ग्रहों को भी प्रकाशमय करता है उसी प्रकार शिव का दायां नेत्र भी सृष्टि को जीवनदायक शक्ति प्रदान करता है। स्वयं सूर्य को भी शिव के इसी नेत्र से तेज मिलता है। वैदिक ग्रंथों में शिव एवं चंद्रमा का विशेष संबंध बताया गया है। जल तत्व सोम को अमृत तुल्य माना गया है। जीवन का पोषण जल ही करता है। यही जल तत्व शिव का बायां नेत्र है।


शिव का तीसरा नेत्र जो बंद ही रहता है अग्रि रूप है जो सकारात्मक रूपमती कल्याणकारी है परंतु यदि इस पर अंकुश न लगाया जाए तो यह विनाश का कारण भी बन जाता है। शिव अपनी इस शक्ति पर नियंत्रण ही रखते हैं और इसका इस्तेमाल बुराई के नाश के लिए ही करते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों शोधकर्ताओं, आविष्कारकों एवं जीवन में महान कार्य करने वालों ने इस तीसरी आंख की शक्ति को पहचाना एवं जीवन में महत्वपूर्ण कार्य किए।

भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में जहां दिव्य दृष्टि देकर अपने विराट स्वरूप के साथ अर्जुन को उसके विराट स्वरूप का ज्ञान कराया, वहीं उन्होंने माता यशोदा को दिव्य दृष्टि देकर अपने मुंह में समस्त ब्रह्मांड की शक्तियां हमारे शरीर में हैं, इसका दिव्य दर्शन करवाया। हनुमान जी को जामवंत जी ने यही ज्ञान देकर अपनी शक्ति को जानने की दिव्य दृष्टि भी दी।

हम अपनी दो आंखों से झूठी शानो-शौकत, तड़क-भड़क देख कर जीवन के मूल्य उद्देश्य से भटक जाते हैं। हम उसी का अनुसरण करते हैं जो देखते हैं। भौतिक चकाचौंध के मायाजाल में इसीलिए फंस गए हैं हम सब। तीसरी आंख से हमारे महर्षि शरीर की अंदरुनी शक्ति को पहचानते थे। आज इन्हीं अंदरुनी शक्तियों के बारे में जानने के लिए नई-नई मशीनों का आविष्कार हो रहा है। ध्यान लगाने वाले दोनों आंखें बंद करके इसी त्रिनेत्र से अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने एवं त्रिनेत्र की सहायता से अनेक आश्चर्यजनक कार्य कर पाते हैं।

 

Niyati Bhandari

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