शीतला सप्तमीः क्यों लगाया जाता है माता को बासी खाने का भोग?

punjabkesari.in Wednesday, Mar 27, 2019 - 12:42 PM (IST)

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आज शीतला सप्तमी का दिन बड़ा ही खास होता है और कई लोग इसका व्रत भी रखते हैं। लेकिन भारत के कुछ हिस्सो में इस व्रत का पालन सप्तमी और किसी स्थानों पर अष्टमी पर किया जाता है। इस व्रत को रखने के लिए लोग एक दिन पहले ही आटे और गुड की मीठी रोटी, पूरी, सब्जी और माता को भोग लगाने के लिए बहुत कुछ बनाकर रख लेते हैं और अगले दिन यानि सुबह माता शीतला की पूजा करने के बाद, उन्हें रात के बने पकवानों का भोग लगाया जाता है और जिसे ठंडी का नाम दिया गया है। भोग लगाने के बाद पूरे परिवार को सप्तमी के दिन ठंडा भोजन ही करना होता है। क्योंकि इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता। लेकिन क्या किसी को इसके पीछे का कारण पता है कि माता को एक दिन पहले बने प्रसाद का ही क्यों भोग लगाया जाता है। अगर नहीं तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।
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कहते हैं कि इस व्रत को करने से शीतला माता धन-धान्य से पूर्ण और परिवार वालों को प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि माता शीतला की पूजा करने पर चेचक, खसरा आदि रोगों का प्रकोप नहीं फैलता है।
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शीतला सप्तमी या अष्टमी का व्रत करने वाले लोग इस दिन ठंडे या फिर एक दिन पहले बने भोजन ही खाते हैं। क्योंकि इस दिन चूल्हा जलाने की मनाही होती है। इसके पीछे का धार्मिक कारण यह है कि शीतला का मतलब जिन्हें ठंडा प्रिय होता है। इसलिए माता शीतला को खुश करने के लिए ठंडी चीज़ों का भोग लगाया जाता है और उत्तर भारत में इसे बसौड़ा व्रत के नाम से जाना जाता है। 
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वैसे ठंडे भोजन करने के पीछे एक और कारण भी है, ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद बासी खाने को भोजन में शामिल करना बंद कर दिया जाता है। क्योंकि ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं। 
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