शीतला अष्टमी 2020: बीमारियों से छुटकारा चाहते हैं तो करें ये काम

Friday, Jun 12, 2020 - 05:30 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग की मानें तो कृष्ण पक्ष की अष्टमी, वैसाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता शीतला माता मुख्य रूप से बीमारियों से छुटकारा दिलवाने वाली देवी मानी जाती है। ज्योतिष मान्यताओं की मानें तो इन चार महीने के इन खास 4 दिनों में जो भी माता का व्रत करता है उसे हर तरह के रोग से आज़ादी मिल जाती है। इस समय पूरे देश-दुनिया पर कोरोना महामारी अपने जोरों-शोरों पर है। बहुत से लोग इससे संक्रमित है तो बहुत से लोग इससे बचने में लगे हैं। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि कैसे इस रोग से निजात पाई जाए।

तो आपको बता दें बीमारियों से मुक्ति दिलवाने वाली मां शीतला की आगे दी गई स्तुति आपके लिए फायेदमंद साबित हो सकती है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो इस दौरान माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने से, व्रत रखने से तथा परिवार सहित माता शीतला की पूजा करने से शुभ लाभ प्राप्त होते हैं। 

आइए जानें इस दिन किस इनकी कौना सी स्तुति करनी लाभदायक होती है-

।।श्री शीतलाष्टकं ।।
।।श्री शीतलायै नमः।।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीशीतला देवता, लक्ष्मी (श्री) बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ऋष्यादि-न्यासः- श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।।

ध्यानः-
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्।।

मानस-पूजनः-
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

मंत्र : -
'ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः।।' (11 बार)

।।मूल-स्तोत्र।।
।।ईश्वर उवाच।।
वन्देऽहं शीतलां-देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी-कलशोपेतां, शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ।।1।।

वन्देऽहं शीतलां-देवीं, सर्व-रोग-भयापहाम् ।
यामासाद्य निवर्तन्ते, विस्फोटक-भयं महत् ।।2।।

शीतले शीतले चेति, यो ब्रूयाद् दाह-पीडितः ।
विस्फोटक-भयं घोरं, क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ।।3।।
यस्त्वामुदक-मध्ये तु, ध्यात्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटक-भयं घोरं, गृहे तस्य न जायते ।।4।।

शीतले ! ज्वर-दग्धस्य पूति-गन्ध-युतस्य च ।
प्रणष्ट-चक्षुषां पुंसां , त्वामाहुः जीवनौषधम् ।।5।।

शीतले ! तनुजान् रोगान्, नृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटक-विदीर्णानां, त्वमेकाऽमृत-वर्षिणी ।।6।।

गल-गण्ड-ग्रहा-रोगा, ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनुध्यान-मात्रेण, शीतले! यान्ति सङ्क्षयम् ।।7।।

न मन्त्रो नौषधं तस्य, पाप-रोगस्य विद्यते ।

त्वामेकां शीतले! धात्री, नान्यां पश्यामि देवताम् ।।8।।

।।फल-श्रुति।।
मृणाल-तन्तु-सदृशीं, नाभि-हृन्मध्य-संस्थिताम् ।
यस्त्वां चिन्तयते देवि ! तस्य मृत्युर्न जायते ।।9।।

अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।।10।।

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभाक्तिसमन्वितैः ।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ।।11।।
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता ।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ।।12।।

रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः ।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ।।13।।
एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ।।14।।

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ।।15।।
।। इति श्रीस्कंदपुराणे शीतलाष्टकं संपूर्णम् ।।

Jyoti

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