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Monday, Sep 26, 2022 - 11:53 AM (IST)

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पावन पर्व शारदीय नवरात्र का आगमन होता है। इसमें मां भगवती जगतजननी आदिशक्ति मां जगदम्बा की सेवा तथा आराधना की जाती है। नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है। इन नौ दिनों में भक्त मां भगवती दुर्गा जी के नौ रूपों की पूजा करते हैं। 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥ 
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। 
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥ 
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। 
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ता: शरणं गता:॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे। 

मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा पहले दिन होती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था। 

मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है।

मां दुर्गा की तृतीय शक्ति का नाम चंद्र्रघंटा है। नवरात्रि विग्रह के तीसरे दिन इन का पूजन किया जाता है। मां का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके माथे पर घंटे के आकार का आधा चद्र है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।  

मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। 

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कन्द की माता होने के कारण मां के इस स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। 

मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के 
रूप में जन्म लें। माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाईं। 

मां दुर्गा की सातवीं शक्ति ‘कालरात्रि’ के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भांति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भांति चमकने वाली माला है। मां का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है परन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अत: भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए।

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मां आदि शक्ति दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान  शिव जी ने इनको गौर वर्ण प्रदान किया। तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।

मां भगवती दुर्गा की नवम शक्ति का नाम ‘सिद्धि’ है। सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली माता इन्हीं को माना गया है। 
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में ‘अद्र्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
नवरात्र के दौरान मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं। 

पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में ‘दुर्गम’ नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने वेदों को अपने अधिकार में लेकर देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया जिससे पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया। इस कारण चारों ओर घोर अकाल पड़ जाने से हर ओर हाहाकार मच गया। जीव-जंतु मरने लगे। सृष्टि का विनाश होने लगा। सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रखकर नौ दिन तक ‘मां जगदम्बा’ की आराधना करके उनसे सृष्टि को बचाने की विनती की। तब मां भगवती व असुर दुर्गम के बीच घमासान युद्ध हुआ। मां भगवती ने दुर्गम का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया। 

देवताओं ने मां भगवती की प्रार्थना की :
देवि प्रपन्नाॢतहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

देवताओं ने कहा,‘‘हे शरणागतों के दुख दूर करने वाली देवी! तुम प्रसन्न होओ, हे सम्पूर्ण जगत की माता! तुम प्रसन्न होओ। विन्ध्येश्वरी! तुम विश्व की रक्षा करो क्योंकि तुम इस चर और अचर की ईश्वरी हो।’’ भगवान श्री राम जी ने भी लंका पर चढ़ाई से पूर्व मां भगवती दुर्गा की आश्विन में आने वाले शारदीय नवरात्रि में आराधना कर विजय का वर प्राप्त किया। तभी से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिनों में मां भगवती जगदम्बा की आराधना का यह पर्व अ्रारम्भ हुआ। 

मां भगवती की कृपा पाने के लिए इस तरह आराधना करनी चाहिए : 
सर्वमङ्गलमंङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

हे नारायणी! सम्पूर्ण मंगलों के मंगलरूप वाली! हे शिवे, हे सम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाली! हे शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली गौरी! तुमको नमस्कार है, सृष्टि, स्थिति तथा संहार की शक्तिभूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्व सुखमयी नारायणी तुमको नमस्कार है! हे शरण में आए हुए शरणागतों दीन-दुखियों की रक्षा में तत्पर, सम्पूर्ण पीड़ाओं को हरने वाली हे नारायणी! तुमको नमस्कार है।  

-रविशंकर शर्मा (अध्यक्ष) श्री गीता जयन्ती महोत्सव कमेटी, जालन्धर

Jyoti

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