शरद पूर्णिमा का क्या है सनातन धर्म में महत्व?

punjabkesari.in Thursday, Sep 30, 2021 - 04:56 PM (IST)

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सनातन धर्म के अनुसार यूं तो वर्ष में पड़ने वाली प्रत्येक पूर्णिमा तिथि का महत्व है, परंतु आश्विन मास में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। इस मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि की तरह इस दौरान चंद्रमा पूर्ण रूप से आसमान में दिखाई देता, जिस कारण इसे पूर्णिमा कहा जाता हैै। बता दें इस वर्ष की शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 दिन मंगलवार को पड़ रही है, जिस दौरान देवी लक्ष्मी की विधि वत रूप से पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म के ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है, तथा इसी दिन से ही मौसम बदलता है यानि सर्दियों का आंरभ होता है। ये दिन खासरूप से मां लक्ष्मी को समर्पित, जिस कारण इनकी पूर्णिमा की रात्रि को पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं क्या है इस दिन महत्व, पूजन विधि तथा शुभ मुहूर्त-

शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त-
इस बार शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 दिन मंगलवार के दिन पड़ रही है। 
पूर्णिमा तिथि आरंभ-19 अक्टूबर 2021 को शाम 07 बजे से 
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 20 अक्टूबर 2021 को रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर 

शरद पूर्णिमा महत्व-
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यानि आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को देवी लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति शरद पूर्णिमा हुई थी। जिस कारण इस तिथि को धन-दायक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं। इस दौरान जो लोग रात्रि में जागकर इनका पूजन व जागरण करते हैं, उन पर इनकी कृपा बरसती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं। 

बता दें शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। तो वही कहा जाता इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है और पृथ्वी पर चारों चंद्रमा की उजियारी फैली होती है। धरती जैसे दूधिया रोशनी में नहा रही होती है ऐसा प्रतीत होता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बरसात होती है, इसलिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में चांद की रोशनी में खीर रखने की और अगले दिन सुबह इसके की परंपरा प्रचलित है। 

शरद पूर्णिमा पूजा विधि-
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान करके या स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करेंय़ 
इसके बाद एक लकड़ी की चौकी या पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उसे शुद्ध करें।  
चौकी के ऊपर देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और उन्हें लाल चुनरी भेंट करें। 
फिर लाल फूल, इत्र, नैवेद्य, धूप-दीप, सुपारी आदि से मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना करें, तथा लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
पूजन संपन्न होने के बाद आरती करें।
शाम के समय पुनः मां और भगवान विष्णु का पूजन करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।
इसके अतिरिक्त चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें।
मध्य रात्रि में मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और प्रसाद के रुप में परिवार के सभी सदस्यों में वितरित करें। 
 


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Content Writer

Jyoti

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