शंख बाजे, भूत भागे

Friday, Nov 04, 2016 - 12:06 PM (IST)

पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, विजयोत्सव, आगमन, विवाह, राज्याभिषेक आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ और अनिवार्य माना जाता है क्योंकि इसे विजय, समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना जाता है। मंदिरों में सुबह और शाम के समय आरती में शंख बजाने का विधान है। शंखनाद के बिना पूजा-अर्चना अधूरी मानी जाती है। सभी धर्मों में शंखनाद को अत्यंत पवित्र माना गया है।


अथर्ववेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त में स्पष्ट कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष, वायु  ज्योतिर्मंडल एवं सुवर्ण से संयुक्त है। इसकी ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है। यह हमारा रक्षक है। यह राक्षसों और पिशाचों को वशीभूत करने वाला, अज्ञान, रोग एवं दरिद्रता को दूर भगाने वाला तथा आयु को बढ़ाने वाला है।


शास्त्रकार कहते हैं : 
यस्य शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषत:।
विमुक्त: सर्वपापेन विष्णुना सह मोदते।।


अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख ध्वनि करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद पाता है।


शंख को सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद बजाने के पीछे मान्यता यह है कि सूर्य की किरणें ध्वनि की तरंगों में बाधा डालती हैं। शंख की ध्वनि का तन-मन पर प्रभाव पड़ता है और इसमें प्रदूषण को दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है। भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने अपने यंत्रों के माध्यम से यह खोज लिया था कि एक बार शंख फूंकने से उसकी ध्वनि जहां तक जाती है वहां तक के अनेक बीमारियों के कीटाणु ध्वनि स्पंदन से मूर्च्छित हो जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं। मूर्च्छा, मिर्गी, कंठमाला और कोढ़ के रोगियों के अंदर शंख ध्वनि की प्रक्रिया से रोगनाशक शक्ति उत्पन्न होती है।


कहा जाता है कि शंख ध्वनि उपद्रवी आत्माओं यानि भूत-प्रेत, राक्षस आदि को दूर भगाती है, दरिद्रता का नाश करती है। इसलिए हमारे यहां भी प्रसिद्ध है ‘शंख बाजे, भूत भागे’ निरंतर शंख ध्वनि सुनते रहने से हार्ट अटैक नहीं होता, गूंगापन और हकलाहट में लाभ मिलता है।


इसी कारण छोटे-छोटे बच्चों के गले में छोटे-छोटे शंखों की माला पहनाई जाती है। मान्यता है कि इससे वे जल्दी बोलने लगते हैं। शंख बजाने से फेफड़े शक्तिशाली बनते हैं, जिससे श्वास की बीमारियां जैसे दमा आदि नहीं होते । गूंगे व्यक्ति नियमित शंख बजाने का प्रयास जारी रखें तो उनकी आवाज खुलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा शरीर के सभी अंगों पर इस ध्वनि का प्रभाव पडऩे से मानसिक तनाव, ब्लड प्रैशर, मधुमेह, नाक, कान, पाचन संस्थान के रोग होने की आशंका भी कम होती है।
शंख में जल भरकर पूजा स्थान रखना और पूजा, पाठ-अनुष्ठान होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़कने के पीछे मान्यता यह है कि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती है और शंख में मौजूद गंधक, फासफोरस और कैल्शियम के अंश भी जल में आ जाते हैं। इसलिए शंख के जल को छिड़कने और पीने से स्वास्थ्य सुधरता है। प्राचीन काल में और अब भी बंगाल में स्त्रियां शंख की चूडिय़ां पहनती हैं।
 

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