OH! तो ये था शकुनि मामा के पासों का रहस्य

Friday, Mar 29, 2019 - 12:12 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
महाभारत की कथा में हर एक पात्र की अपनी एक अलग भूमिका थी। उन्हीं में से एक पात्र ऐसा भी था जिसे कि महाभारत युद्ध का जिम्मेदार माना जाता है और था मामा शकुनि। यह गांधारी का भाई और कौरवों के मामा थे। यह अपने स्वभाव से ही अत्यन्त दुष्ट था और बाद में दुर्योधन ने शकुनि को अपना मन्त्री नियुक्त कर लिया था। शकुनि मामा ने पांडवों के अनेक कष्ट दिए। इनके जीवन का अधिकांश समय अपनी बहन के ससुराल में बीता था।आज हम आपको इनके बारे में ऐसी ही कुछ और रोचक बातों के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं -

मामा शकुनि जुआ खेलने में बहुत ही कुशल था। यह प्रायः धृतराष्ट्र के दरबार में बना रहता था। एक बार युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच जुए का खेल खेला गया, लेकिन शकुनि ने दुर्योधन की ओर से जुआ खेला था और मामा ऐसा चतुर जुआरी था कि युधिष्ठिर को एक भी दांव नहीं जीतने दिया और उनका सब कुछ इसने जीत लिया। ज्यों-ज्यों युधिष्ठिर हारते जाते थे त्यों-त्यों यह उन्हें उकसाता और जो चीज़ें उनके पास रह गई थीं उन्हें दांव पर लगाने को कहता था। धीरे-धीरे मामा ने दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति नफरत पैदा करता गया। जुए के इसी खेल के बाद कौरव और पांडवों के बीच महाभारत का महायुद्ध हुआ, जिसमें कुरु वंश का विनाश हो गया। शकुनि जानता था कि अगर महाभारत का युद्ध हुआ तो कौरवों की हार पक्की होगी। लेकिन उसने फिर भी ऐसा ही किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार शकुनि का मन पहले बहुत साफ था और वह अपनी बहन के साथ बहुत प्रेम करता था लेकिन वह ये नहीं चाहता था कि उसकी बहन का विवाह एक नेत्रहीन व्यक्ति के साथ हो, लेकिन भीम के कहने पर गांधारी ने धृतराष्ट्र से शादी कर ली और इसी बात का बदला लेने के लिए उसने ये सारा खेल रचा। तो आइए आगे जानते हैं कि कैसे साधारण से पासों की मदद से उसने ये खेल कैसे खेला। जोकि हैरान कर देने वाली कथा है। 

गांधारी और धृतराष्ट्र के विवाह के कुछ समय बाद धृतराष्ट्र को गांधारी के पहले विवाह के बारे में पता चला था जिससे कि उसे बहुत गुस्सा आया और उसने शकुनि सहित उसके 100 भाइयों और पिता को बंदी बना लिया। बंदी गृह में कैद उन सभी को इतना ही भोजन दिया जाता था कि वह धीरे-धीरे भूख से तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो जाएं। बहुत सोच विचार के बाद शकुनि के पिता ने सोचा कि क्यों न सभी के भोजन के हिस्से से किसी ऐसे बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति की जान बचाई जो भविष्य में अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले सके। अंत में शकुनि को बचाने का फैसला किया गया, लेकिन वह अपने इस प्रण को भूल न जाए इसके लिए सभी ने मिलकर उसका एक पैर को तोड़ दिया, ताकि वह अपने परिवार के अपमान की बात को याद रखे। इसी वजह से शकुनि  लंगड़ा कर चलने लगा। 

गांधारी के पिता को जब ये बात ज्ञात हुई कि उनके बेटे शकुनि को चौसर के खेल में रुचि है तो उन्होंने कहा कि मेरे मरने के बाद तुम मेरी हड्डियों से पासे बना लेना और फिर ये पासे हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे, तुमको जुए में कोई हरा नहीं पाएगा। शकुनि ने अपने आंखों के सामने अपने भाइयों और पिता को मरते देखा था और उसके बाद से ही शकुनि के मन में धृतराष्ट्र के प्रति पहले से भी ज्यादा गहरी बदले की भावना जाग उठी। इसलिए उसने अपने 100 भाइयों की मौत का बदला उसके 100 पुत्रों के विनाश की योजना बनाकर लिया।

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