Shaheed Diwas: मां भारती के महान सपूत भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव

Friday, Mar 24, 2023 - 07:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Shaheed diwas bhagat singh Rajguru and Sukhdev: हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक जाने वाले रणबांकुरों द्वारा देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए की गई तपस्या का ही प्रतिफल है कि आज हम स्वतंत्रता का उपभोग कर रहे हैं। इन्हीं क्रांतिकारी वीरों में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की त्रिमूर्ति को एक साथ 23 मार्च, 1931 को 23 वर्ष की आयु में ही फांसी पर लटका शहीद कर दिया गया था।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

देश और दुनिया के इतिहास में वैसे तो कई घटनाएं 23 मार्च की तारीख में दर्ज हैं जिनमें से भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी दिया जाना, भारत के इतिहास में दर्ज इस दिन की सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
शहीद भगत सिंह का जन्म  पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव में (जो अब पाकिस्तान में है), शहीद सुखदेव का पंजाब के लुधियाना में और शहीद शिवराम हरि राजगुरु का जन्म महाराष्ट्र में पुणे जिले के खेड़ा में हुआ था। चौरी-चौरा के बाद महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस ले लेने से नाराज होकर हजारों युवाओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियारबंद क्रांति का रुख किया। काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से इनका गुस्सा और बढ़ गया।

चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह व साथियों ने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन किया। 30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में निकाले जुलूस  पर पंजाब पुलिस के सुपरिंटैंडैंट जेम्स ए. स्कॉट ने लाठीचार्ज करवा दिया, जिसमें बुरी तरह घायल लाला लाजपत राय का 17 नवम्बर, 1928 को निधन हो गया।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने उनकी हत्या का बदला लेने की कसम खाकर जेम्स ए. स्कॉट की हत्या का प्लान बनाया। एक महीने बाद 17 दिसम्बर, 1928 को तीनों प्लान के तहत लाहौर पुलिस हैडक्वार्टर के बाहर पहुंच गए परंतु स्कॉट की जगह असिस्टैंट सुपरिंटैंडैंट ऑफ पुलिस जॉन पी. सांडर्स बाहर आ गया। जिसे स्काट की भ्रांति में भगत सिंह और राजगुरु ने वहीं ढेर कर दिया।
सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह एक सरकारी अधिकारी की तरह ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में श्रीमती दुर्गा देवी बोहरा (क्रांतिकारी शहीद भगवतीचरण बोहरा की पत्नी) और उनके 3 साल के बेटे के साथ, राजगुरु उनके अर्दली बनकर लाहौर से बाहर निकल कर ट्रेन से कलकत्ता पहुंच गए, जबकि चंद्रशेखर आजाद साधु का वेष बना कर मथुरा चले गए।

8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार को चेताने के लिए सैंट्रल असैंबली में सभागार के बीच में, जहां कोई नहीं था, धुएं वाले बम फैंके। यहां इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि किसी को कोई नुक्सान न हो। बम फैंकने के बाद भागने की बजाय उन्होंने वहीं खड़े होकर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए पर्चे उछाले जिन पर लिखा था-‘बहरों को सुनाने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत होती है।’ इसके बाद उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दे दी।

12 जून, 1929 को भगत सिंह को असैंबली बम धमाके के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। सांडर्स की हत्या केस के लिए भगत सिंह को लाहौर की मियांवाली जेल में शिफ्ट किया गया। 10 जुलाई को सांडर्स हत्या केस की सुनवाई शुरू हुई, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत 14 लोगों को मुख्य अभियुक्त बनाया गया।

अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी तथा बकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई । इन्हें 24 मार्च को फांसी होनी थी, लेकिन अंग्रेजों ने लगभग 12 घंटे पहले ही 23 मार्च, 1931 को, शाम 7 बजकर 33 मिनट पर इन्हें लाहौर जेल में फांसी देकर शहीद कर दिया। जैसे ही तीनों फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो जेल ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आजाद हो’ के नारों से गूंजने लगी और अन्य कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे। सभी का शरीर पूरे एक घंटे तक फांसी के फंदे से लटकता रहा और तब तक नहीं उतारा गया जब तक वहां मौजूद डॉक्टरों ने तीनों के मृत होने की पुष्टि नहीं कर दी।

इनकी फांसी के खबर सुनकर जेल के बाहर भीड़ इकठ्ठी होने लगी। इससे अंग्रेज डर गए और जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई। उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और बहुत अपमानजनक तरीके से उस पर उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया। अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाना था, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलुज के किनारे शवों को जलाने का फैसला किया गया। हालांकि लोगों को भनक लग गई और वे वहां भी पहुंच गए। यह देखकर अंग्रेज अधजली लाशें छोड़कर भाग गए।

भारत के वे सच्चे सपूत थे, जिन्होंने अपनी देशभक्ति और देश प्रेम को अपने प्राणों से भी अधिक महत्व दिया। भारत सरकार ने इनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए और पंजाब के फिरोजपुर में सतलुज के किनारे इनका शहीदी स्मारक बनाया है।  

Niyati Bhandari

Advertising