शहीद भगत सिंह की विचारधारा को श्रद्धांजलि

punjabkesari.in Monday, Mar 23, 2020 - 11:08 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
शहीद भगत सह जी आज की सदी के महान पंजाबी नायक हैं। वह केवल एक शहीद ही नहीं बल्कि एक सूझवान, कला प्रेमी तथा जुझारू इंकलाबी थे। उन्हें आजादी की शिक्षा परिवार से ही मिली थी। 27 दिसम्बर, 1907 को पिता किशन सिंह के घर माता विद्यावती की कोख से जन्म लेने वाले भगत सिंह ने बचपन में ही अपनी क्रांतिकारी सोच का उस समय ही प्रदर्शन कर दिया था, जब उसने खेतों में फसल के बीजों की जगह बंदूकें उगाने की बात कही थी। भगत सिंह जहां देश को आजाद करवाने के लिए भरी जवानी में ही फांसी का रस्सा चूम गए, वहीं अपनी रचनाओं द्वारा स्वस्थ समाज के निर्माण में भी सराहनीय योगदान दे गए। 
PunjabKesari
देश को आजादी के संग्राम में चाहे पूरे भारतवासियों ने आजाद भारत के लिए संघर्ष किए तथा कुर्बानियां दीं लेकिन यहां यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि समूचे भारतवासियों में कुर्बानियां तथा शहादतें देने में पंजाब सबसे आगे रहा है, जिसमें चाहे काले पानी की सजा सहना, फांसी के रस्से को चूमना, सम्पत्तियां कुर्क करवाना या फिर छाती पर गोलियां खाने की बात हो। शहीद ऊधम सिंह सुनाम, मदन लाल ढींगरा, लाला लाजपत राय, शहीद करतार सिंह सराभा, बाबा सोहन सिंह भकना जैसे अनेक पंजाबी शूरवीरों ने शहादतों के किस्से गाए तथा देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाया। 
PunjabKesari
शहीद भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव की शहादतों ने युवा वर्ग को बहुत प्रोत्साहित किया। शहीद भगत सिंह पर जेलों में रहते भाई साहिब भाई रणधीर सिंह का गहरा असर पड़ा तथा वहीं भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह द्वारा किसानों के संघर्ष के लिए दिए योगदान भी उनकी सोच पर असर डालते रहे। उनके चाचा स. अजीत सिंह द्वारा लिखे गीत 'पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ने उनकी मानसिकता पर गहरा असर डाला। इन सभी लहरों का असर जेल में रहते भगत सिंह पर पड़ा तथा उनके देशभक्ति तथा समाज सेवा के परिपक्व विचारों को जेलों में ही लिखे पत्रों द्वारा प्रकट हुआ। उनके द्वारा यह धारणा पक्की बनी कि जब तक भारत आजाद नहीं माना जाएगा, तब तक अमीर तथा गरीब की खाई खत्म नहीं होगी, मनुष्य द्वारा मनुष्य की की जाने वाली लूट बंद नहीं होगी तथा सामाजिक समानता नहीं आएगी, तब तक आजादी का संकल्प अधूरा माना जाएगा। इस सोच के कारण ही भगत सिंह आदि को आजादी संग्राम के हजारों महान शूरवीर शहीदों में शहीद-ए-आजम कहलाने तथा युवा वर्ग का रोल मॉडल बनने का सम्मान शहीद भगत सिंह आदि को मिला।
Follow us on Twitter
हम हर वर्ष देखते हैं कि शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर पंजाब तथा देश के हजारों युवा सिर पर पगड़ी सजा कर शहीद भगत सिंह जैसा रूप बनाकर मोटरसाइकिल, बड़ी कारों, ट्रैक्टरों तथा साइकिलों आदि के काफिले बना कर शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़कलां में श्रद्धांजलि अर्पण करने के लिए पहुंचते हैं, जो इस बात की गवाही भरते हैं कि आज भी देश के युवाओं की अपने देश के शहीदों के लिए प्यार तथा सम्मान की भावना बरकरार है, जो हमारे लिए गर्व की बात है। 
PunjabKesari
भगत के शहीदी दिवस पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली राजनीतिक कांफ्रैंस तथा पंजाब की कलाकृति का प्रतीक माने जाने वाले नाटककारों द्वारा खेले जाने वाले नाटक उनके द्वारा दी गई शहीदी को याद करवाते हैं। शहीदों के द्वारा अपने देश तथा देश के लोगों के गले से गुलामी के फंदे उतारने के लिए दी गई कुर्बानियों को लोगों में जिंदा रखने के लिए उनके पैतृक गांव में भारत सरकार की ओर से 16 करोड़ रुपए खर्चे के साथ शहीदों के जीवन बारे दर्शाता म्यूजियम तैयार करवाया गया, जो आने वाली युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। इस समय इकलौता पंजाब ही नहीं बल्कि देश तथा पूरा संसार कोविड-19 जैसी नामुराद बीमारी से जूझने के कारण उनके गांव खटकड़कलां में हार पहनाकर मूॢत के आगे खड़े होकर शहीदों की सोच पर चलने का प्रण लेने से मेरे सहित पंजाब तथा देश के हजारों लोग वंचित रह गए हैं परन्तु पूरे भारत के आमंत्रण को मुख्य रखते हुए तथा ऐसे जानलेवा वायरस के साथ निपटने के लिए शहीदों के दिल में सम्मान को सामने रखते हुए अपने गरों में रह कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाए तथा उनके आदर्शों पर चलने का प्रण लिया जाए। मैं इन शब्दों के द्वारा ही फूलों की माला लेकर शहीदों को श्रद्धा अर्पित करता हूं। 
Follow us on Instagram
आज शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि महानायक के सपनों पर देश का निर्माण किया जा सके। शहीदों के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज भलाई तथा देश में फैली हुई सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए संघर्ष करने का प्रण लेना समय की मांग है तथा देश की आजादी में शहीद होने वाले युवाओं के प्रति हमारा फर्ज भी। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह चाहे अपने साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ हंस कर फांसी का रस्सा चूम गए थे लेकिन वह दुनिया भर में रहते करोड़ों-अरबों भारतीयों के दिलों में आज भी जीवित हैं। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News