देवताओं को भी ये चाह पूरी करने के लिए धारण करना पड़ेगा मनुष्य शरीर

Saturday, Jun 03, 2017 - 11:48 AM (IST)

एक गुरु अपने आश्रम में लोगों की चिकित्सा भी किया करते थे। उनके इस कार्य में उनके 2 शिष्य सहयोग देते थे। दोनों शिष्य बड़े ईश्वर भक्त थे। वे प्रतिदिन सुबह ईश्वर की प्रार्थना करते थे। एक बार आश्रम में कोई रोगी आ गया। उस समय दोनों शिष्य अपनी प्रार्थना में व्यस्त थे। गुरु ने अपने सहयोग हेतु शिष्यों को बुलाने के लिए एक व्यक्ति भेजा लेकिन शिष्यों के लिए प्रार्थना से बढ़कर कुछ भी नहीं था। 


जब वह व्यक्ति शिष्यों के पास गया तो उन्होंने कहा, ‘‘अभी हमारी प्रार्थना चल रही है। प्रार्थना समाप्त होते ही हम आते हैं।’’ 

 

थोड़ी देर होने पर गुरु ने फिर व्यक्ति को भेजा। इस बार शिष्य आ तो गए लेकिन वे थोड़े क्रोध में थे। उन्होंने आते ही गुरु जी से कहा, ‘‘आपने हमें अचानक क्यों बुलाया। यह समय हमारी प्रार्थना का है। हम इस समय ईश्वर की पूजा के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं करते।’’


गुरु ने उस रोगी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘मैंने इस व्यक्ति की सेवा के लिए तुम्हें बुलाया है। देवता तो किसी भी समय प्रार्थना स्वीकार कर सकते हैं लेकिन सेवा करने का समय कभी-कभी ही आता है। सेवा प्रार्थना से ऊंची है क्योंकि देवता भी यदि किसी की सेवा करना चाहें तो नहीं कर सकते। उन्हें भी सेवा करने के लिए मनुष्य शरीर धारण करना पड़ेगा। जो मनुष्य सेवा करता है उसकी अल्प समय की प्रार्थना को भी देवता स्वीकार कर लेते हैं।’’


गुरु की बात को समझकर शिष्य अपने कृत्य पर लज्जित हुए और उस दिन से प्रार्थना से अधिक महत्व सेवा को देने लगे। वे समझ चुके थे कि देवताओं की प्रार्थना करना मनुष्य का आध्यात्मिक कर्तव्य है लेकिन प्रार्थना के कारण किसी को पीड़ा हो तो देवता भी उस प्रार्थना को स्वीकार नहीं करते। प्रार्थना उसी व्यक्ति की स्वीकार की जाती है जो सेवाभावी होता है।

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