घर का चिराग होता है ऐसा बेटा, स्वयं को परखें

Monday, Jan 09, 2017 - 01:54 PM (IST)

गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परंतु गुप्ता जी ने यह कह कर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास है इसी के साथ पूरी जिंदगी अच्छे से कट जाएगी।


पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार उसके हवाले कर दिया और स्वयं कभी मंदिर और कभी आफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चिंत हो गए। पूरा घर बहू के सुपुर्द कर दिया।


पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी आफिस से आ गया था और हाथ-मुंह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही मांगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिता जी आफिस चले गए।


पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी आफिस चला गया। लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा, ‘‘पापा आज आपको कोर्ट चलना है, आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’


पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा, ‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नहीं है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूं कि शायद तुझे भी मां की जरूरत नहीं है फिर दूसरा विवाह क्यों?’’


पुत्र ने कहा, ‘‘पिता जी न तो मैं अपने लिए मां ला रहा हूं न आपके लिए पत्नी, मैं तो केवल आपके लिए दही का इंतजाम कर रहा हूं। कल से मैं किराए के मकान में आपकी बहू के साथ रहूंगा तथा आफिस में एक कर्मचारी की तरह वेतन लूंगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’


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