द्वितीय रूप-मैया ब्रह्मचारिणी ‘‘अभिलाषाओं का दीया जलाएं’’

punjabkesari.in Monday, Mar 19, 2018 - 10:41 AM (IST)

अभिलाषाओं का दीया जलाएं,
मैया ब्रह्मचारिणी के द्वारे जाएं! 
अंतर्मन से अंधकार मिटाए
काम बिगड़े मैया जी संवारती!!
आओ हम सब रल-मिल उतारें,
द्वितीय नवरात्र की आरती!!
किया तप हजारों बरस तूने
त्रिलोकी नाथ को पाने को!
खाए बेलपत्र, कंद-मूल सूखे
हुई निराहार फिर रिझाने को!! 
नारदमुनि के आदेश को मैया
तन-मन-धन गले लगाया था!
क्षीण काया देख हुई दुखी
मां मैना का मन अकुलाया था!!
रही होंठों से शिव-शिव पुकारती
उतारें पावन हृदय मां की आरती!! 
कठोर तपस्या से खुश होकर
गंगाजल से भोले ने नहलाया!
चमक-दमक उठा स्वरूप मैया
तडि़त तरंगों-सा तन लहराया!!
हुआ अचंभित देख ब्रह्मांड सारा,
फैला दसों-दिशाओं उजियारा!!
रचाया विवाह शंभु ने तुझसे 
झिलमिलाया अंबर का नजारा!!
उमा देवी नाम से दुनिया ध्याती
उतारें खुशी-खुशी मां की आरती!! 
कहे ‘झिलमिल’ अंबालवी कवि
सादा, सरल, सहज रूप तुम्हारा!
श्वेत परिधान, स्वर्ण मुकुट विराजे 
जपमाला, कमण्डल हस्तन प्यारा!!
तप, त्याग, संयम, सदाचार बढ़े
निरंतर साधकों के मन में!
पूजा करे जो मां की कंजकों की 
खिलें महकें फूल आंगन में!!
ईष्र्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ मिटाती 
उतारें लहरा के मां की आरती!! 


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