सोमवार को धारण करें यह कवच, खुद को बनाएं देवताओं की तरह शक्तिशाली
punjabkesari.in Monday, Oct 02, 2023 - 08:57 AM (IST)

Rudraksha: शिवपुराण के अनुसार जब तारकासुर के पराक्रम से सभी देवगण त्रस्त हो गए तो वे भगवान रुद्र के पास अपनी दुर्दशा सुनाने तथा तारकासुर से त्राण पाने के लिए गए। भगवान शिव ने उनका दुख दूर करने के लिए दिव्यास्त्र तैयार करने के लिए सोचा और इस दिव्यास्त्र को तैयार करने में उन्हें एक हजार वर्ष तक अपने नेत्रों को खुला रखना पड़ा। नेत्रों के खुले रहने के कारण जो अश्रु (आंसू) बूंद नीचे गिरे वे ही पृथ्वी पर आकर रुद्राक्ष के रूप में उत्पन्न हो गए। यूं तो रुद्राक्ष नक्षत्रों के अनुसार सताइस मुखों वाला, कहीं-कहीं इक्कीस मुखों वाला तो कहीं पर सोलह मुखों तक का वर्णन मिलता है परन्तु चौदहमुखी तक का ही रुद्राक्ष अत्यंत मुश्किल से प्राप्त होता है। इन सभी रुद्राक्षों की मुख के आधार पर अलग-अलग विशेषताएं होती हैं।

जिस प्रकार समस्त देवताओं में विष्णु और नवग्रहों में सूर्य श्रेष्ठ होते हैं उसी प्रकार वह मनुष्य जो कंठ या शरीर पर रुद्राक्ष धारण किए होता है अथवा घर में रुद्राक्ष को पूजा-स्थल पर रख कर पूजन करता है, मानवों में श्रेष्ठ मानव होता है-
‘देवानांच यथा विष्णु: ग्रहाणां च यथा रवि:।
रुद्राक्षं यस्य कण्ठं वा, गेहे स्थितोऽपि वा।।’

दो मुख वाला रुद्राक्ष, छह मुख वाला रुद्राक्ष तथा सात मुख वाले रुद्राक्ष को एक साथ मोतियों के साथ जड़ कर माला के रूप में पहनने से ‘रुद्राक्ष कवच’ का रूप बन जाता है। यह कवच सभी अमंगल का नाश करता है तथा इच्छानुसार फल प्रदान करने वाला होता है।
दो मुख (द्विमुखी) रुद्राक्ष शिवपार्वती का स्वरूप है। यह अद्र्धनारीश्वर का प्रतीक है। इसके धारण करने से धन-धान्य, सुत, आह्लाद आदि सभी वैभव प्राप्त हो जाते हैं। कुंवारी कन्या प्रभुत्व वाली पति प्राप्त करती है तथा बच्चों में अच्छे संस्कार आ जाते हैं।

छह मुख (षड्मुखी) रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय का स्वरूप माना जाता है। इसका संचालक शुक्र ग्रह है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से वैवाहिक समस्याएं, रोजगारपरक समस्याएं, भूत-प्रेतादिक समस्याएं त्वरित नष्ट हो जाती हैं। किसी भी प्रकार के अमंगल की संभावना नहीं रहती।
सात मुख वाला (सप्तमुखी) रुद्राक्ष अनंगस्वरूप एवं अनंग के नाम से प्रसिद्ध है। इस रुद्राक्ष का प्रतिनिधित्व ‘शनिदेव’ करते हैं। इस रुद्राक्ष को धारण करने से शनिदेव की वक्रदृष्टि समाप्त हो जाती है तथा पारिवारिक कलह, दांपत्य जीवन में वैमनस्यता आदि दूर हो जाती है।

एक माला में द्विमुखी रुद्राक्ष, षड्मुखी रुद्राक्ष तथा सप्तमुखी रुद्राक्ष के एक-एक दाने के साथ ही बीच में मोती को गूंथ देने से ‘रुद्राक्ष कवच’ का निर्माण हो जाता है। इस माला को स्त्री-पुरुष, युवक-युवती कोई भी इसका अभिषेक करके गले में धारण कर सकता है। जो व्यक्ति जिस किसी भी सात्विक भावना से इस ‘रुद्राक्ष कवच’ को धारण करता है उसकी कामना अवश्य ही पूरी होती है।
किसी भी सोमवार को मोती जडि़त ‘रुद्राक्ष कवच’ को अपने पूजा स्थल पर रख कर उसका दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल पंचामृत द्वारा अभिषेक कर दिया जाता है। अभिषेक करते समय अभिषेक करने वाले को पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। माला का अभिषेक करके अभिषेककर्ता प्रार्थना की मुद्रा में ॐ नम: शिवाय पञ्चाक्षरी मंत्र का एक सौ आठ बार जाप कर लें।

अभिषेक करने से पहले भगवान शंकर का एवं ‘कवच’ का धूप, दीप पुष्पादि द्वारा षोडशोपचार विधि से पूजा कर लेना भी त्वरित फलदायी होता है। बिल्वपत्र चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। पूरी विधि समाप्त हो जाने पर ‘रुद्राक्ष कवच’ को गले में धारण कर लें।
विद्येश्वर संहिता के अनुसार ‘रुद्राक्ष कवच’ धारण करने वाले व्यक्ति की कोई भी ऐसी कामना नहीं होती जो पूरी न हो सके। आज के समय में छात्र-छात्रा, गृहिणी, व्यवसायी, नौकरीपेशा आदि सभी के लिए यह कवच अत्यंत ही प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है। कन्या का विवाह, पुत्र की पढ़ाई, आर्थिक सम्पन्नता, निर्भयता आदि के लिए ‘रुद्राक्ष-कवच’ को अवश्य ही धारण करना चाहिए।
वैसे तो यह कवच किसी विद्वान के परामर्श उपरांत धारण करना चाहिए लेकिन सावन भगवान शिव का प्रिय माह है इसलिए किसी भी सोमवार को इसे धारण करें और खुद को देवताओं की तरह शक्तिशाली बनाएं।