Sawan Special: जब बजी कान्हा की बंसी, शिव शंकर लगे थिरकने...

Thursday, Jul 14, 2022 - 05:24 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रावण मास एक ऐसा महीना है जिसमें शिव शंभू की विशेष प्रकार से पूजा-अर्चना की जाती है। मुख्य रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए कुंवारी कन्याएं इनकी विभिन्न प्रकार से आराधना करती हैं ताकि उन्हें अच्छा वर की प्राप्ति हो सके। इस दौरान सोमवार के व्रत रखने का खासा महत्व होता है। सावन के महीने में शिव जी को प्रसन्न करने की परंपरा हैं। अब आप में से लगभग लोग यही सोच विचार कर रहे होंगे कि हम यकीनन आपको श्रावण से जुड़ी कोई जानकारी देने जा रहे हैं। तो आपको बता दें आप गलत सोच रहे हैं। क्योंकि आज हम श्रावण मास से संबंधित नहीं बल्कि शिव शंकर व श्री कृष्ण की रासलीला से जु़ड़ा एक किस्सा आपको बताने जा रहे हैं। जिस किस्से की हम बात करने जा रहे हैं लगभग लोग इससे आज भी अंजान होंगे। तो चलिए बिल्कुल भी समय जाया न करते हुए आपको रबरू करवाते हैं इस दिलचस्प किस्से से जो श्री कृष्ण व देवों के देव महादेव से जुड़ा हुआ है। 

कहा जाता है जितनी प्रासंगिक बाल गोपाल के बाल्य काल की लीलाएं हैं, उतनी ही प्रासंगिक व प्रचलित श्री कृष्ण की रासलीला। हिंदू धर्म में इसका अपना अनोखा महत्व है। कहा जाता है 'रासलीला' एक ऐसा नजारा जिसका ख्याल आते ही प्रत्येक भक्त के ह्रदय में श्री राधा कृष्ण की छवि बस जाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण की बांसुरी का हर कोई दिवाना था, गोपियां उनकी बंसी की धुन सुनकर मस्त हो जाती थी। न केवल उस युग में बल्कि कलियुग में भी श्री कृष्ण के प्रति लोगों के दिल में  स्नेह आज भी बरकरार है। ये तो हुई गोपियों की बात, अब बात करते हैं देवों के देव महादेव की, जो श्री कृष्ण की बंसी बजने पर थिरकने लगे थे। 

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रासलीला से जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार एक बार की बात है जैसे ही श्री कृष्ण ने बंसी बजाना शुरू किया, तब सारी गोपियां इकट्ठे होकर यमुना तट पर जा पहुंची और कान्हा के आस पास नृत्य करने लगी। राधा रानी भी श्री कृष्ण की बंसी की धुन सुनकर खुद को रोक नहीं पाई और वो भी यमुना तट चली गई। ये दृश्य इतना सुखद था कि कोई भी देखने के लिए उत्साहित हो जाए। तो ऐसे में देवी-देवता पीछे कैसे रह सकते थे। अतः शास्त्रों में वर्णित है कि इस नजारे को आकाश से समस्त देवी-देवता देख रहे थे परंतु जब शिव जी ने ये सुंदर व लुभावना दृश्य देखा तो वो इस रासलीला में जान के लिए आतुर गो गए। भगवान शिव का भी उस रासलीला का आनंद लेने का मन हुआ, अतः वह स्वयं वृंदावन पहुंच गए। लेकिन नदी की देवी वृन ने उन्हें भीतर जाने नहीं दिया, चूंकि रासलीला में श्री कृष्ण के अलावा समस्त गोपियां थी। देवी वृन ने उन्हें बताया कि रासलीला में कोई भी पुरुष नहीं जा सकता। परंतु उनकी यानि शिव शंकर की व्याकुलता व उत्सुक्ता को देखते हुए उन्होंने उन्हें कहा कि अगर आप जाना चाहते हैं तो आपको महिला रूप में आना होगा। 

देवी के मुख से ये वचन सुनकर शिव शंकर दुविधा में पड़ गए और सोच विचार करने लगे। दूसरी ओर रासलीला का अंत होने वाला था। शिव जी के लिए ये स्थिति बहुत ही विलक्षण थी क्योंकि शिव जी पौरुष थे। परंतु श्री कृष्ण की रासलीला को देखने का मौका न हाथ से न चला जाए, ऐसा विचार कर भोलेनाथ समय व्यर्थ किए बिना तुरंत ही गोपी वेष धारण करने के लिए मान गए। जिसके बाद देवी  वृन ने उनको वस्त्र दिए।, जिन्हें पहनकर भगवान शंकर श्री कृष्ण की रासलीला का आनंद लेने के लिए निधिवन के भीतर चले गए। लेकिन लीलाधर श्री कृष्ण तीनों लोकों के नाथ भगवान शंकर को पहचानने में बिल्कुल देर नहीं लगाई और उनका ये मनमोहक गोपी रूप देखकर उनके इस स्वरूप को श्री कृष्ण ने गोपेश्वर नाम दे दिया। बता दें वृंदावन में गोपेश्वर नामक मंदिर है, जहां शिव जी को महिला रूप में पूजा जाता है इतना ही नहीं यहां इनका साज-श्रृंगार भी महिलाओं या गोपियों की तरह किया जाता है। 

Jyoti

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