Saubhagya Sundari Teej vrat Katha: सती से पार्वती तक की अमर प्रेम कथा और व्रत का पौराणिक महत्व
punjabkesari.in Saturday, Nov 08, 2025 - 08:37 AM (IST)
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Saubhagya Sundari Teej vrat Katha 2025: सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत तिथि आज शनिवार, 8 नवंबर 2025 को पड़ रही है। जो हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को सुहागिन महिलाओं के द्वारा मनाई जाती है। सौभाग्य सुंदरी तीज, सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत पावन पर्व माना गया है। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव के अटूट प्रेम, समर्पण और एकनिष्ठता का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य, वैवाहिक सुख और पति की दीर्घायु के लिए उपवास रखती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, इस तीज का व्रत रखने से पार्वती जैसी सौभाग्यशालिनी स्त्री होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Saubhagya Sundari Teej Vrat Procedure and Worship Rules सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत विधि और पूजन नियम
इस दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजन स्थान को स्वच्छ करें।
फिर माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर विधिवत पूजन करें।
फल, पुष्प, दीपक, नैवेद्य और सुहाग सामग्री अर्पित करें।
व्रती महिलाएं पूरे दिन निराहार रहकर शाम को कथा सुनती हैं और भगवान शिव-पार्वती से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं।

The mythological story of the Saubhagya Sundari Teej fast, The story of Sati becoming Parvati सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत की पौराणिक कथा, सती से पार्वती बनने की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थीं। एक बार उनके पिता दक्ष प्रजापति ने शिव का अपमान किया। पति का अपमान सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया। देह त्यागने से पहले सती ने प्रण लिया कि वे हर जन्म में शिव को ही अपने पति के रूप में प्राप्त करेंगी।
पुनर्जन्म में वे पर्वतराज हिमवान की पुत्री पार्वती बनीं। उन्होंने शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की। वर्षों तक जंगलों में रहकर केवल फल-पत्तों पर जीवन व्यतीत किया।
उनकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसी शिव-पार्वती मिलन की स्मृति में सौभाग्य सुंदरी तीज का व्रत आरंभ हुआ।

The benefits and spiritual message of the Saubhagya Sundari Teej fast सौभाग्य सुंदरी तीज व्रत का फल और आध्यात्मिक संदेश
इस व्रत से नारी को आध्यात्मिक शक्ति, अटूट प्रेम और जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है।
यह पर्व सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग, तप और समर्पण से सिद्ध होता है।
माता पार्वती की भक्ति से प्रेरित होकर स्त्रियां यह व्रत रखती हैं ताकि उनके वैवाहिक जीवन में सुख, प्रेम और सौंदर्य सदा बना रहे।

