1 क्लिक में जानें स्नान से संबंधित सनातन परंपराएं

Tuesday, Jan 07, 2020 - 10:11 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिन्दू सनातन धर्म में प्रतिदिन प्रात:काल में स्नान करके पवित्र होकर संध्या, पूजा-पाठ करने का निर्देश है। हमारे यहां प्रत्येक शुभ कर्म में पवित्रता स्थापित करने के लिए स्नान करने का विशेष महत्व है जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से स्नान का तात्पर्य शारीरिक शुद्धि से है। हमारे शरीर में असंख्य रोमकूप हैं। दिन भर परिश्रम करने पर शरीर से पसीना निकलता है। वायु लगने से पसीने का द्रवभाव तो वाष्प बनकर उड़ जाता है परंतु अद्रव मैल इन रोम कूपों में जम जाता है। यदि इस मल को नित्य साफ न किया जाए तो कुछ दिनों बाद मैल की मोटी तह एकत्र होकर इन रंध्रों को बिल्कुल बंद कर देगी जिससे अंदर का मल और दूषित वायु बाहर न आकर अंदर ही अंदर सड़ जाएगी फलत: शरीर में दुर्गंध आएगी एवं भयंकर रोग होंगे। इसलिए निरोग एवं स्वस्थ रहने के लिए दैनिक स्नान जरूरी है।

आज के सभ्य व शिक्षित समाज में बिस्तर पर ही चाय बिस्कुट एवं बिना स्नान किए नाश्ता भोजन करने की आदत-सी पड़ गई है अत: पाश्चात्य संस्कृति में आकंठ डूबे लोग ही प्रश्र करते हैं कि बिना स्नान किए खा लिया तो क्या हुआ? शास्त्र कहते हैं 'अस्नायी समलं भुक्ते' बिना स्नान किए भोजन खाना मल खाने के तुल्य है। शरीर वैज्ञानिक भी कहते हैं कि स्नान करने पर शरीर में शीतलता आती है एवं नई  स्फूर्ति जागृत होती है। इससे स्वाभाविक भूख भी जागृत होती है। उस समय किए गए भोजन का रस हमारे शरीर में पुष्टिवर्धक साबित होता है ।

इक्षुराजपयोमूलं फलं ताम्बूलमौषधम्।
भुक्त्वा पीत्वापि कर्तव्या स्नानदानादिका: क्रिया:।।


अर्थात- गन्ने का रस, पानी, दूध, फल, मूल, पान और औषधि इन वस्तुओं को खा पीकर भी स्नान दान और ध्यान की क्रिया की जा सकती है। ये सभी वस्तुएं शीघ्र सुपाच्य हैं।

Jyoti

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