Samudra Manthan: समुद्र मंथन के 14 रत्न जानें, आखिर कहां से आए और किसे मिला कौन सा खजाना ?
punjabkesari.in Sunday, Nov 16, 2025 - 01:36 PM (IST)
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Samudra Manthan: हिंदू पौराणिक कथाओं की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और रोमांचक घटना है। यह केवल देवताओं और दानवों के बीच अमृत प्राप्त करने का एक प्रयास नहीं था, बल्कि यह त्याग, सहयोग और जीवन के मूलभूत तत्वों का प्रतीक भी है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण देवराज इंद्र अपनी शक्ति और ऐश्वर्य खो बैठे। इससे देवता कमजोर पड़ गए और दानवों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। अपनी शक्ति और समृद्धि को वापस पाने के लिए, भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। मंथन का मुख्य उद्देश्य अमृत प्राप्त करना था, जिसे पीकर देवता अमर हो जाते और दानवों को पराजित कर पाते। आज जानेंगे समुद्र मंथन की पूरी कहानी, इससे निकले 14 अनमोल रत्नों और उनके देवताओं और दानवों के बारे में।

समुद्र मंथन से निकले 14 अनमोल रत्न
हलाहल विष- यह सबसे पहले निकला, जिसकी तीव्र ज्वाला से सृष्टि जलने लगी। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए इसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे वह नीलकंठ कहलाए।
कामधेनु गाय- यह सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाली दिव्य गाय थी। इसे ऋषियों ने ग्रहण किया ताकि वे यज्ञ और धर्म कार्य कर सकें।
उच्चैःश्रवा घोड़ा- यह सात मुखों वाला, अत्यंत तेज गति वाला सफेद घोड़ा था। इसे दानवों के राजा बलि ने ग्रहण किया।
ऐरावत हाथी- यह श्वेत वर्ण का विशाल और दिव्य हाथी था, जिसके चार दांत थे। देवराज इंद्र ने इसे अपना वाहन बनाया।
कौस्तुभ मणि- यह अत्यंत चमकीली और अनमोल मणि थी। इसे भगवान विष्णु ने अपने वक्षस्थल पर धारण किया।
कल्पवृक्ष- यह एक इच्छापूर्ति करने वाला दिव्य वृक्ष था। इसे देवताओं ने स्वर्ग लोक में स्थापित किया।

रंभा अप्सरा- यह अत्यंत सुंदर और आकर्षक अप्सरा थी। देवताओं को मिली और देवलोक में स्थान प्राप्त किया।
महालक्ष्मी- यह साक्षात धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी थीं। भगवान विष्णु ने इन्हें अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण किया।
वारुणी- यह मदिरा की देवी थीं। दानवों ने इसे ग्रहण किया।
चन्द्रमा- यह शीतलता प्रदान करने वाला चंद्रमा था। भगवान शिव ने इसे अपने मस्तक पर धारण किया।
शारंग धनुष- यह एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य धनुष था। इसे भगवान विष्णु ने ग्रहण किया।
पाञ्चजन्य शंख- यह विजय की घोषणा करने वाला दिव्य शंख था।इसे भगवान विष्णु ने ग्रहण किया।
धन्वंतरि वैद्य- यह आयुर्वेद के जनक, हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इन्हें देवताओं ने ग्रहण किया और अमृत कलश पर अधिकार जताया।
अमृत- यह अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण तत्व था, जो अमरता प्रदान करता था। देवताओं को मिला लेकिन इसका बंटवारा भगवान विष्णु ने किया।

