Sabarmati Ashram: इसलिए बना ‘साबरमती आश्रम’

Wednesday, May 31, 2023 - 09:34 AM (IST)

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Mahatma Gandhi Ashram at Sabarmati Ahmedabad, Gujarat: महात्मा गांधी ने 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के समीप कोचराब में आध्यात्मिक आश्रम की स्थापना अफ्रीका में फीनिक्स आश्रम में रहने वाले भारतीय युवाओं तथा दोस्तों और विभिन्न सेवादारों के लिए की। गांधी जी ने सत्य की खोज, सत्य के प्रति समर्पण तथा दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए जिन उपायों का अनुसरण किया, उससे भारतीयों को रू-ब-रू करवाने के लिए इस आश्रम का निर्माण किया और इसका नाम ‘सत्याग्रह आश्रम’ रखने का निर्णय लिया। इस नामकरण के पीछे उनका मकसद था कि इसमें उनका मातृभूमि के प्रति सेवाभाव प्रतीत होता था।

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Importance of sabarmati ashram: वर्ष 1917 में क्षेत्र में प्लेग फैलने के कारण ग्राम कोचराब से आश्रम को अहमदाबाद के समीप ही एक नए स्थान साबरमती में स्थानांतरित करना पड़ गया। आश्रम के निवासियों के लिए अनुशासन से लेकर 11 आदर्शों का प्रण लेना होता था। ये थे सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, अस्वच्छा, स्वदेशी, अभय, अस्पृश्यता, सभी धर्मों का सम्मान, हाथ से श्रम।

साबरमती आश्रम की स्थापना नदी के किनारे निर्जन स्थल पर की गई थी, जहां बहुतायत में सांप पाए जाते थे। इसके आसपास कोई भी भवन न था। आश्रम के नजदीक साबरमती केन्द्रीय कारागार था। गांधी जी को यह स्थल इसलिए पसंद था कि जेल के आसपास का क्षेत्र अमूमन साफ-सुथरा होता है तथा सत्याग्रहियों के लिए जेल आना-जाना लगा रहता है। इस आश्रम के आरंभिक वर्षों में चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल हड़ताल, खेड़ा सत्याग्रह जैसे प्रमुख आंदोलनों का संचालन यहीं से हुआ था।

आरंभिक दिनों में एक दलित परिवार ने आश्रम में स्थायी तौर पर रहने का आग्रह किया। इससे आश्रमवासियों में विरोध उठा। अहमदाबाद तथा बम्बई के सम्पन्न हिन्दुओं ने आश्रम को धनराशि देना बंद कर दिया। आश्रम के वित्त विभाग का कार्यभार देखने वाले मगनलाल ने आश्रम की वित्तीय कठिनाई बारे गांधी जी को अवगत करवाया लेकिन वह बिल्कुल भी विचलित न हुए।

एक रोज प्रात: एक गुमनाम दानी महात्मा गांधी को आश्रम संचालन के लिए कई हजार रुपयों की धनराशि प्रदान कर लौट गया। यह दानी व्यक्ति अंबालाल साराभाई था। उसके दिए पैसों से आश्रम का 1 वर्ष तक खर्चा निकल गया।

Sabarmati ashram stay: आश्रम की दिनचर्या तथा नियम कड़े थे। आश्रम के निवासियों को प्रात: 4 बजे उठना पड़ता था। 4.15 से 4.45 तक प्रात: की प्रार्थना होती थी। 5 बजे से 6.10 बजे तक नहाना, व्यायाम तथा अध्ययन होता। 6.10 बजे से 6.30 बजे तक प्रात: का नाश्ता होता था। 6.30 बजे से 7.00 बजे तक महिला प्रार्थना सभा, 7 बजे से 10.30 बजे तक हाथ से श्रम, शिक्षा तथा सफाई कार्य, 10.45 बजे से 11.15 तक दोपहर का खाना, 11.15 से 12 बजे दोपहर तक विश्राम, 12 बजे से 4.30 बजे सायं तक श्रम कार्य जिसमें कक्षाएं भी लगती थीं।
सायं 4.30 बजे से सायं 5.30 बजे तक मनोरंजन, 5.30 बजे से 6.00 बजे तक शाम का भोजन, 6.00 से 7.00 बजे तक आम प्रार्थना सभा, 7.30  बजे से 9.00 बजे तक मनोरंजन तथा 9.00 बजे आश्रम में सोने की घंटी बज जाती थी। दैनिक नियमावली में आवश्यकता अनुसार बदलाव भी होता था। आश्रम में विभिन्न गतिविधियां संचालित की जाती थीं।

सामूहिक प्रार्थना : इसका ध्येय व्यक्तिगत पवित्रता तथा प्रभु में सम्पूर्ण आसक्ति व्यक्त करना होता था।

स्वच्छता सेवा : इसके तहत आश्रम में रहने वालों को स्वच्छता सेवा करनी होती थी। इस कार्य के लिए आश्रम में कोई भी सेवादार तैनात न था।

यज्ञीय कताई कार्य : इसका मूल उद्देश्य राष्ट्र में हाथ से कताई की पुरातन पद्धति को पुन: जीवित करना था।

कृषि : आश्रम में खादी के कार्य के लिए कपास की खेती तथा पशुओं के चारे के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया। आश्रम को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सब्जी तथा फल उत्पादन को बढ़ावा मिला।

दुग्ध उत्पादन : आश्रम में डेयरी फार्मिंग को बढ़ावा दिया गया। डेयरी में 27 गाय तथा 47 बछियां रखी गईं। इसका संचालन अखिल भारतीय गौ रक्षा संघ के दिशा निर्देशों के अनुसार किया गया।

चमड़ा इकाई : अखिल भारतीय गौ रक्षा संघ के सहयोग से आश्रम में चमड़ा इकाई की स्थापना की गई। इसके साथ सैंडल तथा जूते बनाने का कार्य किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा : आश्रम के निवासियों के आध्यात्मिक,  बौद्धिक, नैतिक तथा शारीरिक विकास के लिए स्कूल खोला गया। साथ ही अखिल भारतीय हथकरघा संघ के सहयोग से अलग से खादी उत्पादों के उत्पादन की शिक्षा प्रदान करने के लिए तकनीकी भी स्कूल खोला गया।

महात्मा गांधी अहमदाबाद के समीप खोले कोचराब तथा साबरमती आश्रमों में कुल 2151 दिन रहे। 

 

 

Niyati Bhandari

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