Rules of Kanwar Yatra: 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा आरंभ, पहली बार जाने वाले जानें ये जरूरी नियम
punjabkesari.in Thursday, Jul 10, 2025 - 02:00 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Rules of Kanwar Yatra 2025: श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहा जाता है, वर्षा ऋतु में आता है। यह मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इस दौरान उनकी पूजा करने से विशेष फल मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए श्रावण मास में ही कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ जिसमें से निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था। श्रावण मास के सोमवार का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
सावन मास की तिथियां
इस बार सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई से होगी और समापन 9 अगस्त को होगा। इस बार सावन माह में सोमवार के 4 व्रत होंगे।
कांवड़ यात्रा का महत्व
श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का भी विशेष महत्व है। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों से जल भरकर लंबी दूरी तय करते हैं और उस जल को शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
सावन के सोमवार, प्रदोष व्रत और शिवरात्रि के दिन कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है।
ऐसी मान्यता है कि इन शुभ तिथियों पर शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि आप भी इस साल कांवड़ यात्रा में भाग लेने की योजना बना रहे हैं, तो आपको कुछ जरूरी नियमों को ध्यान में रखना होगा।
कब से शुरू होगी कांवड़ यात्रा
इस बार पवित्र कांवड़ यात्रा की शुरुआत 11 जुलाई को सावन मास के पहले दिन से होगी जो 23 जुलाई को सावन शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक के साथ पूर्ण होगी।
4 तरह की कांवड़ यात्रा
1. सामान्य कांवड़ : यह सबसे आम प्रकार की कांवड़ यात्रा है, जिसमें भक्त अपनी सुविधा के अनुसार रुक-रुक कर यात्रा करते हैं।
2. डाक कांवड़ : इसमें भक्त बिना रुके, बिना आराम किए तेज गति से या दौड़ते हुए गंगाजल लेकर अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं।
3. खड़ी कांवड़ : इस यात्रा में, भक्त कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं और इसे हमेशा सीधा खड़ा रखते हैं।
4. दांडी कांवड़ : यह सबसे कठिन प्रकार की कांवड़ यात्रा है, जिसमें भक्त दंडवत प्रणाम करते हुए, यानी जमीन पर लेटकर, शिवधाम तक पहुंचते हैं।
पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि जब समुद्र मंथन के बाद निकले विष का पान कर भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की तो उनका कंठ नीला पड़ गया था। कहते हैं कि इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है।
इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
पहली बार कांवड़ यात्रा करने वाले जान लें जरूरी नियम
कांवड़ यात्रा देवों के देव महादेव में आस्था का प्रतीक है, जो लोग कांवड़ यात्रा करते हैं, उनको अपने मन में शिव भक्ति रखनी चाहिए। जब से कांवड़ यात्रा प्रारंभ करें, तब से लेकर शिवलिंग के जलाभिषेक होने तक मन, वचन और कर्म को शुद्ध रखें।
कांवड़ यात्रा पर जा रहे हैं तो कुछ वस्तुओं को अपने साथ अवश्य रखें। इसमें कांवड़ (लकड़ी या बांस से बनी हुई), गंगा जल भरने के लिए पात्र, सजावट के लिए लाल-पीले वस्त्र और पुष्प, भगवान शिव की मूर्ति, फोटो, त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष आदि शामिल हैं।
इसके साथ ही चलने पर मधुर ध्वनि देने वाली घंटी, भजन, गीत या कीर्तन के लिए ऑडियो सिस्टम, नी-कैप, दातुन भी लेकर जा सकते हैं।
कांवड़ यात्रा एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है इसलिए इस दौरान धूम्रपान, शराब, भांग या किसी भी नशीली वस्तु से दूरी बनाकर रखें।
नहाए बिना यात्री कांवड़ को नहीं छूते।
तेल, साबुन, कंघी, चमड़े की वस्तुएं स्पर्श नहीं करनी चाहिएं।
यात्रा में शामिल सभी कांवड़ यात्री एक-दूसरे को भोला-भोली कहकर बुलाते हैं।
अगर एक बार आपने कांवड़ यात्रा की शुरुआत कर दी तो कांवड़ को जमीन पर न रखें। इससे आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। आप अगर मल-मूत्र के लिए जा रहे हैं तो इसे किसी ऊंचे स्थान पर रखकर जाएं।
कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को भगवान शिव के नाम का भजन करना चाहिए। उनके नाम का जाप करें, भगवान शिव शंभू आपका बेड़ा पार लगाएंगे।