Life को बिंदास जीने के लिए याद रखें ये बात

Wednesday, Aug 14, 2019 - 09:52 AM (IST)

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कोई कहता है जीवन संघर्ष है तो कोई कहता है यह उत्सव है। ऊपरी तौर पर भिन्न दिखने वाली 2 अलग-अलग बातें जीवन के बारे में इसलिए कही जाती हैं क्योंकि समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार जीवन संदर्भ और तदानुसार हमारे मन की स्थितियां बदलती रहती हैं। जब सब कुछ मन मुताबिक और ठीक चल रहा होता है तो जीवन उमंगमय और उत्सवमय लगता है लेकिन जैसे ही परिस्थितियां विपरीत या चुनौतीपूर्ण होने लगती हैं तो जीवन कठिन, दुष्कर और संघर्षमय प्रतीत होने लगता है।

असल में ये दोनों मत जीवन को लेकर समाज में प्रचलित अलग-अलग प्रकार के दृष्टिकोणों की देन हैं। एक दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति को संतोषी होना चाहिए और अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं को जीवन में किसी न किसी स्टेज पर विराम दे देना चाहिए। वेदों में आयु के अनुसार जीवन में 4 आश्रमों का जो विधान किया गया है उसके पीछे यही भावना बताई गई है। शारीरिक क्षमता के मद्देनजर खेलों में संन्यास के चलन को भी जीवन में कहीं न कहीं विराम लेने या संतोष के विचार का विस्तार मानना चाहिए।

असल में जीवन के विविध क्षेत्रों की तरह जीवन जीना भी अपने आप में एक कला है और इसलिए कहा जाता है कि जो इस कला में जितनी जल्दी शिक्षित-दीक्षित हो जाए उसमें उसका उतना ही भला है। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को इस कला में कम से कम एक वांछनीय स्तर की कामयाबी का प्रयास अवश्य करते रहना चाहिए ताकि जीवन में सामंजस्य बिठाया जा सके। 

इसके लिए जीवन में संघर्ष की हकीकत को मानते हुए ही आगे बढ़ा जा सकता है। निष्कर्ष तो यही है कि जीवन रूपी कर्मक्षेत्र में व्यक्ति को आखिर तक डटे रहना चाहिए। फिर समाजसेवा और धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यों में लगे व्यक्ति को रिटायरमैंट जैसी सोच से बचना चाहिए क्योंकि एक तो ये क्षेत्र वेदसम्मत हैं और दूसरे समाज को इनकी आवश्यकता है।

Lata

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