द्रोणाचार्य के इस प्रसंग से जानें कौन सज्जन कौन दुर्जन ?

Wednesday, Jun 02, 2021 - 05:33 PM (IST)

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महाभारत के अनुसार द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज तथा घृतार्ची नामक अप्सरा के पुत्र तथा धर्नुविद्या में निपुण परशुराम के शिष्य थे। ये कुरू प्रदेश में पांडु के पांचों पुत्र तथा धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के गुरु थे। कुरुक्षेत्र में होने वाले युद्ध के समय ये कौरव पक्ष के सेनापति थे। एकलव्य भी गुरु द्रोणाचार्य के शिष्यों में से एक था। इसने द्रोणाचार्य द्वारा गुरु दक्षिणा मांगे जाने पर अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पाई थी। अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। वे अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे।

एक बार गुरु द्रौणाचार्य ने युधिष्ठिर से कहा कि ‘‘जाओ और यह पता लगाकर आओ कि राजधानी में दुर्जन पुरुष कितने हैं?’’ 

दूसरी ओर उन्होंने दुर्योधन को भी आदेश दिया कि ‘‘वह जानकारी हासिल करके आए कि राजधानी में सज्जन पुरुष कितने हैं?’’ 

दोनों राजपुत्रों ने राजधानी का विस्तृत भ्रमण किया और द्रौणाचार्य के सम्मुख उपस्थित हुए। युधिष्ठिर को एक भी दुर्जन पुरुष नहीं मिला, दुर्योधन को एक भी सज्जन पुरुष के दर्शन नहीं हुए।

द्रौणाचार्य दोनों राजपुत्रों का उत्तर सुनकर मुस्कराए। उन्होंने इस घटना की व्याख्या की कि युधिष्ठिर को इसलिए कोई दुर्जन नहीं मिला क्योंकि वह स्वयं सज्जन है। दुर्योधन को इसलिए कोई सत्पुरुष नहीं दिखा क्योंकि स्वयं सज्जनता में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। मुख्य बात यह है कि जो हम होते हैं अंतत: उसी की तलाश कर लेते हैं।

Jyoti Chahar

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