कैसे भगवान शंकर से मिली सती, क्या थी इनके अस्तित्व की कहानी

Monday, Jan 28, 2019 - 12:59 PM (IST)

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इस बात से तो सब वाकिफ ही होंगे कि भगवान शिव का पहला विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती से हुआ था। लेकिन क्या किसी को ये बात पता है कि सती का जन्म कैसे हुआ और कैसे उनके मन में भगवान शिव के प्रति इतना प्रेम उत्पन्न हुआ। तो चलिए आज हम आपको सती के अस्तित्व से जुड़ी इस कहानी के बारे में बताते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सभी पुत्रियां गुणवाण थीं लेकिन फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्ति-संपन्न हो। इसी बात को विचार करने हुए उन्होंने पुत्री के लिए तप करना शुरू कर दिया। तप करते-करते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, 'मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम किस कारण तप कर रहे हो? दक्ष ने तप करने का कारण बताया तो मां बोली मैं स्वयं पुत्री रूप में तुम्हारे यहां जन्म धारण करूंगी और मेरा नाम सती होगा।

कुछ समय बाद भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थी। सती ने बाल्यावस्था में ही कई ऐसे अलौकिक आश्चर्य चकित करने वाले कार्य कर दिखाए थे, जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष को भी विस्मयता होती रहती थी। लेकिन जब सती विवाह योग्य हो गई तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विषय में परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, सती तो आद्या की अवतार हैं। आद्या आदि शक्ति और शिव आदि पुरुष हैं। अतः सती के विवाह के लिए शिव ही योग्य और उचित वर हैं। लेकिन दक्ष को शिव कुछ पसंद नहीं थे। उनका कहना था कि वे हमेशा गले में सांप और शेर की खाल पहने घूमते रहते हैं। लेकिन सती की जिद के कारण उनको मानना पड़ा। अंत में सती का विवाह भोलेनाथ से संपन्न हुआ।

एक बार देवलोक में ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया और वहां सभी बड़े-बड़े जन शामिल हुए। जब सभा में दक्ष का आगमन हुआ तो सभी देवता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान शिव खड़े नहीं हुए। उन्होंने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया। दक्ष ने इस बात का बहुत बुरा लगा। केवल यही नहीं, उनके ह्रदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी। वे उनसे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। 

राजा दक्ष ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया और सभी को बुलावा भेजा लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया। लेकिन माता सती का यज्ञ में जाना और अपनी बहनों से मिलने का बहुत मन हुआ। देवी ने भगवान से वहां जानें की आज्ञा मांगी किन्तु भगवान ने वहां जाने से मना किया कि अभी वहां जाना ठीक नहीं। लेकिन माता नहीं मानी और हठ करती रही। अंत में भगवान ने उन्हें जाने के लिए भेज दिया और साथ में अपना एक गण भी भेजा, जिसका नाम वीरभद्र था। 

जब सती अपने पीहर पहुंची तो राजा दक्ष ने उनसे उनके पति शिव के बारे में बहुत कटु और अपमानजनक शब्द कहे। लेकिन देवी सती काफी समय तक मौन रही। कुछ समय बाद सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, किंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा। वे भगवान शिव का भाग न देखकर अपने पिता से इसके बारे में पूछा तो दक्ष ने कहा कि मैं तुम्हारे पति शिव को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला धारण करने वाला हैं। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। उसे कौन भाग देगा? इन बातों को सुनकर सती आंखे क्रोध में लाल हो गई और वो कहने लगी कि जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता हैं। जो नारी अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनती हैं उसे नरक में जाना पड़ता हैं। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा। 

ये सब देखकर वीरभद्र ने क्रोध में आकर दक्ष का मस्तक काटकर फेंक दिया। जब ये बात भगवान शिव के कानों में भी पड़ी तो वे प्रचंड आंधी की भांति कनखल जा पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव ने अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए। भगवान शिव ने सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और देवताओं की सांसेंं भी रूक गई। ये सब देखकर भगवान विष्णु आगे बढ़े और अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। ये सब होने के बाद भगवान शिव को कुछ होश आया और पुनः सृष्टि के सारे कार्य चलने लगे। 

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Lata

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