Kundli Tv- भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस तरह दिलवाई Life line

Tuesday, Sep 18, 2018 - 10:00 AM (IST)

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महाभारत के युद्ध के समय की बात है अर्जुन तथा कर्ण आमने-सामने थे। एक-दूसरे को मार डालने का प्रयास चल रहा था। सहसा कौरवों की प्रेरणा से कर्ण पूरी शक्ति लगाकर लगातार बाणों की वर्षा करने लगा। यह देख अर्जुन क्रोध से भर उठे। उन्होंने अनेक दमकते हुए बाण मारकर कर्ण के नाजुक स्थानों को बींध डाला। इससे उसे बड़ी पीड़ा हुई, वह विचलित हो उठा, किंतु किसी तरह धैर्य धारण कर रणभूमि में डटा रहा। इतना ही नहीं दुर्योधन को अपने जिन दो हजार कौरव-वीरों पर बड़ा गर्व था, उन्हें भी अर्जुन ने रथ, घोड़े और सारथि सहित मौत के मुख में पहुंचा दिया। शेष बचे हुए कौरव वीर भयभीत होकर धनुष से छोड़ा हुआ बाण जहां तक न पहुंच सके, उतनी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।

कर्ण अकेला रह गया। उसने परशुराम जी से प्राप्त आथर्वण अस्त्र का प्रयोग करके अर्जुन के अस्त्रों को शांत कर दिया। अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे। युद्ध करते समय वीरता, अस्त्र-संचालन, मायाबल तथा पुरुषार्थ में कभी कर्ण बढ़ जाता था, तो कभी अर्जुन। दोनों एक-दूसरे पर तीव्र गति से प्रहार कर रहे थे। जो लोग युद्ध देख रहे थे, वे दोनों की प्रशंसा अपने-अपने अनुसार कर रहे थे। 

युद्ध करते-करते कर्ण जब किसी भी तरह अर्जुन से बढ़ कर पराक्रम न दिखा सका, तो उसे अपने सर्पमुख बाण की याद आई। वह बाण बड़ा भयंकर था, आग में तपाया होने के कारण वह सदा देदीप्यमान रहता था। अर्जुन को ही मारने के लिए कर्ण ने उसे बड़े यत्न से और बहुत दिनों से सुरक्षित रखा था। वह नित्य उसकी पूजा करता और सोने के तरकश में चंदन के चूर्ण के अंदर उसे रखता था।

उसने सोचा कि अर्जुन पर इसके बिना विजय पाना कठिन है। इसलिए उसने पूर्ण उत्साह के साथ उसी बाण को धनुष पर चढ़ाया और अर्जुन की ओर ताक कर निशाना ठीक किया। उस समय कर्ण के सारथि शल्य ने जब उस भयंकर बाण को धनुष पर चढ़ा हुआ देखा तो कहा, ‘‘कर्ण! तुम्हारा यह बाण अर्जुन के कंठ में नहीं लगेगा, जरा सोच-विचार कर फिर से निशाना ठीक करो, जिससे यह मस्तक काट सके।’’

यह सुनकर कर्ण की आंखें क्रोध से उद्दीप्त हो उठीं। वह शल्य से बोला, ‘‘द्रराज! कर्ण दो बार निशाना नहीं साधता। मेरे जैसे वीर कपटपूर्वक युद्ध नहीं करते। यह कह कर कर्ण ने जिस सर्पमुख बाण की वर्षों से पूजा की थी, उस बाण को अर्जुन की ओर छोड़ दिया और अर्जुन का तिरस्कार करते हुए उच्च स्वर में कहा, ‘‘अर्जुन! अब तू मारा गया।’’

कर्ण के धनुष से छूटा हुआ वह बाण अंतरिक्ष में पहुंचते ही प्रज्वलित हो उठा। सैंकड़ों भयंकर उल्काएं गिरने लगीं। इन्द्रादि सम्पूर्ण लोकपाल हाहाकार कर उठे। इधर जिसके चतुर सारथि भगवान श्रीकृष्ण हों उसे भला कौन मार सकता था? श्री कृष्ण ने युद्ध स्थल में खेल-सा करते हुए अर्जुन के रथ को तुरंत ही पैर से दबाकर उसके पहियों का कुछ भाग पृथ्वी में धंसा दिया। घोड़ों को भी जरा-सा झुका दिया। भगवान का यह कौशल देख कर आकाश में स्थित अप्सराएं, देवता और गन्धर्व फूलों की वर्षा करने लगे। कर्ण का छोड़ा हुआ वह बाण रथ नीचा हो जाने के कारण अर्जुन के कंठ  में न लगकर मुकुट में लगा। यह वही मुकुट था जिसे ब्रह्मा जी ने बड़े प्रयत्न तथा तपस्या से इंद्र के लिए तैयार किया था और इंद्र ने अर्जुन को पहनाया था। वही मुकुट जीर्ण-शीर्ण होकर जलता हुआ जमीन पर जा गिरा। किरीटधारी अर्जुन साफाधारी हो गए, पर चतुर सारथि के चातुर्य से सर्पमुख बाण विफल हो गया। 
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Niyati Bhandari

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