राम को बलि चढ़ाते-चढ़ाते क्यों महिरावण खुद चढ़ा सूली

Tuesday, Feb 05, 2019 - 05:22 PM (IST)

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ये बात तो सब जानते ही हैं कि रावण का भाई महिरावण तंत्र विद्या के लिए जाना जाता था। वो मां काली का परम भक्त था। रावण की तरह ही महिरावण भी बहुत बड़ा तपस्वी था। वह पाताल लोक का शासक था। उसने काली की भक्ति से कई सिद्धियां हासिल की थीं। वह कई मायावी शक्तियों का स्वामी और कुशल तांत्रिक था। आज हम आपको महिरावण और भगवान राम से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें ये बताया गया है कि कैसे राम की बलि देते-देते महिराण खुद बलि चढ़ गया। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार जब युद्ध में मेघनाद मारा गया तो रावण को बहुत बड़ा सदमा लगा था। तभी रावण को अपने भाई महिरावण की याद आई और उसे युद्ध में ये कहते हुए अपने साथ कर लिया कि अगर वह अपनी आराध्य मां काली को राम और लक्ष्मण की बलि देगा तो वह उस पर प्रसन्न हो जाएगी। युद्ध में महिरावण के शामिल होने की ख़बर सुनकर विभीषण ने इसके बारे में सभी को बताया और हनुमान को राम-लक्ष्मण की सुरक्षा का जिम्मा सौंप दिया। 

महिरावण ने मौका देखकर राम और लक्ष्मण को सोता देख अपनी मायावी शक्तियों से उन्हें अपने वशीभूत कर लिया और पाताल लोक लेकर चला गया। जब इस बात का पता हनुमान जी को लगा तो वो भी पाताल लोक को चले गए। वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि महिरावण मां काली को प्रसन्न करके उनसे अधिक शक्तियां प्राप्त करने के लिए राम और लक्ष्मण की बलि चढ़ाने वाला है। कहा जाता है कि हनुमान ने तब एक मधुमक्खी का वेश धारण किया और माता काली की शरण में जाकर पूछा कि, ‘क्या आप श्री राम का रक्त चाहती हैं?’ इस पर काली मां ने कहा कि वो महिरावण का रक्त चाहती हैं। अपनी इच्छा प्रकट करने के बाद उन्होंने हनुमान को दोनों भाईयों की जान बचाने का रास्ता भी सुझाया। हनुमान ने उसी वेश में यह युक्ति राम के कानों में कह दी। लेकिन तब तक बलि का समय नजदीक आ चुका था। राम और लक्ष्मण को बलि के लिए तैयार कर दिया गया था। महिरावण ने राम को अपना सिर बलिवेदी पर रखने को कहा लेकिन राम ने महिरावण से कहा कि, ‘वो क्षत्रिय और एक योद्धा हैं उसने कभी किसी के आगे कभी सिर नहीं झुकाया है। इसलिए अगर पहले तुम ऐसा करके दिखाओगे तो मैं शायद ऐसा कर सकूं। 

राम की बलि देने की जल्दी में महिरावण इसके पीछे के राज को समझा नहीं और उसने अपना सिर बलि देने के स्थान पर रख दिया। मौके मिलताे ही हनुमान अपने वास्तविक रूप में आए और उन्होंने बलि देने के लिए रखे खड्ग को उठा कर महिरावण का सिर धड़ से अलग कर दिया। और उसके बाद महिरावण का रक्त माता काली को अर्पण किया गया।
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