भगवान का दरवाजा

Sunday, Oct 04, 2020 - 05:08 PM (IST)

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एक साधक भगवान की पूजा-उपासना तथा स्वाध्याय में लीन रहता था। उसके निवास-स्थान के पास ही एक गरीब वृद्ध रहता था। एक दिन वह बीमार हो गया। उसके कराहने की आवाज आई। साधक ने सोचा चलकर उसकी सेवा-सहायता की जाए। फिर सोचा ऐसा करने से पूजा-उपासना में बांधा पहुंचेगी। वह उपासना में लगा रहा।

कुछ दिन बाद उसे लगा कि उपासना करते-करते काफी समय बीत चुका है। क्यों न भगवान के दर्शन किए जाएं। वह गया तथा भगवान का दरवाजा खटखटाने लगा। 

भगवान ने पूछा, ‘‘कौन है जो दरवाजा खटखटा रहा है?’’ 

भक्त ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा भक्त हूं। दरवाजा खोलो।’’ 

भगवान ने उत्तर दिया, ‘‘अभी तुम दर्शनों के पात्र नहीं बन पाए हो। उपासना अधूरी है। फिर आना।’’

भक्त वापस लौट गया। रात को जैसे ही उसे पड़ोसी के कराहने की आवाज सुनाई दी, वह पूजा छोड़कर उसकी सेवा में लग गया। स्वार्थ की जगह उसके हृदय में करुणा, सेवा की भावना घर कर गई थी। वह उपासना के साथ-साथ सेवा-सहायता में भी तत्पर रहने लगा। कुछ समय बाद वह पुन: भगवान के द्वार पर पहुंचा। जैसे ही उसने दरवाजा खटखटाया कि भगवान ने पूछा, ‘‘कौन है?’’

भक्त ने कहा, ‘‘तू ही तो है जो तेरा दरवाजा खटखटा रहा है। अपने को भी नहीं पहचानते भगवन्।’’ 

‘‘अब पहचान लिया है। दरवाजा खुला है, अंदर आ जाओ।’’ 

भगवान ने उसे अपने पास बुला लिया।

Jyoti

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