Kundli Tv- ऐसे प्रकट हुई थी माता कात्यायनी, पढ़ें कथा

Monday, Oct 15, 2018 - 10:01 AM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें VIDEO)
आज शारदीय नवरात्र का छठा दिन है। इस रोज मां कात्यायनी के पूजन का विधान है। मां को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सभी मिट जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को नाश करने के लिए मां के शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए। इस दिन ॐ कात्यायन्यै नमः मन्त्र का जप करने के बाद भोग लगाकर कर्पूर से आरती करनी चाहिए l मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसके पीछे एक पौराणिक कथा है-

कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। 

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं।   जन्म लेकर शुक्ल की सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए रुक्मणी ने और ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

मान्यता है कि महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा के साथ वन में कठोर तपस्या की थी। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। तत्पश्चात महिषासुर नामक एक राक्षस के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिदेवों के तेज से एक कन्या का जन्म हुआ जिसने अपनी असीम शक्ति और तेज के बल पर महिषासुर का अंत कर दिया।
नवरात्र में नहीं जा पा रहे हैं ज्वाला देवी तो घर बैठे करें दर्शन (Video)

Niyati Bhandari

Advertising