Kundli Tv- कैसे प्रकट हुई थी मां शैलपुत्री?

Wednesday, Oct 10, 2018 - 04:59 PM (IST)

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शैलपुत्री मंत्र-
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥


नवरात्र में दुर्गा भवानी के पूजन का विधान होता है। नवपात्रों के नौ दिन माता दुर्गा के अलग-अलग रूपों को सर्मपित होते हैं। इसके अनुसार सबसे पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। लेकिन आज भी बहुत कम लोग होंगे जिन्हें इनके बारे में पता नहीं होगा। तो आइए आपको बताते हैं देवी शैलपुत्री से जुड़ी कुछ बातें।  

हिंदू धर्म में मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका वाहन वृषभ है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। इन्हें ही प्रथम देवी दुर्गा और सती के नाम से जाना जाता है। 

पौराणिक कथा- 
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकर जी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकर जी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने घर पहुंचीं तो सिर्फ उनकी मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव और भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा। 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 

पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के अन्य नाम हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ था।  
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Jyoti

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