Kundli Tv- आईए सीखें, मृत्यु को जीतने की विद्या
punjabkesari.in Monday, Jun 25, 2018 - 10:54 AM (IST)
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महात्मा शुकदेव भगवान वेद व्यास के पुत्र थे। इनकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक कथाएं मिलती हैं। कहीं इन्हें व्यास की पत्नी वटिका के तप का परिणाम और कहीं व्यास जी की तपस्या के परिणामस्वरूप भगवान शंकर का अद्भुत वरदान बताया गया है। एक कथा ऐसी भी है कि जब इस धराधाम पर भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधिका जी का अवतरण हुआ तब श्री राधिका जी का क्रीड़ा शुक भी इस धराधाम पर आया।
उसी समय भगवान शिव पार्वती जी को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी कथा सुनते-सुनते निद्रा के वशीभूत हो गईं और उनकी जगह पर शुक ने हुंकार भरना प्रारंभ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तब उन्होंने शुक को मारने के लिए उसका पीछा किया। शुक भाग कर व्यास जी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। भगवान शंकर वापिस लौट गए।
यही शुक व्यास जी के अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट हुए। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद्, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक् ज्ञान हो गया था। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले।
जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। व्यास जी इनके पीछे-पीछे ‘हा पुत्र! हा पुत्र!’ पुकारते रहे किन्तु इन्होंने उस पर कोई ध्यान न दिया।
श्री शुक देव जी का जीवन वैराग्य का अनुपम उदाहरण है। ये गांवों में केवल गौ दुहने के समय ही जाते और उतने ही समय तक ठहरने के बाद जंगलों में वापस चले आते थे।
व्यास जी की हा्र्दिक इच्छा थी कि शुकदेव जी श्रीमद्भागवत जैसी परमहंस संहिता का अध्ययन करें, किन्तु यह मिलते ही नहीं थे। श्री व्यास जी ने श्रीमद्भागवत की श्री कृष्ण लीला का एक श्लोक बनाकर उसका आधा भाग अपने शिष्यों को रटा दिया। वे उसे गाते हुए जंगल में समिधा लाने के लिए जाया करते थे।
एक दिन शुकदेव जी ने भी इस श्लोक को सुन लिया। श्री कृष्ण लीला के अद्भुत आकर्षण से बंध कर शुकदेव जी अपने पिता श्री व्यास जी के पास लौट आए। फिर उन्होंने श्रीमद्भागवत महापुराण के अठारह हजार श्लोकों का विधिवत अध्ययन किया। इन्होंने इस परमहंस संहिता का सप्ताह-पाठ महाराज परीक्षित को सुनाया, जिसके दिव्य प्रभाव से परीक्षित जी ने मृत्यु को भी जीत लिया और भगवान के मंगलमय धाम के सच्चे अधिकारी बनें। आप भी मृत्यु पर विजय पाने के लिए श्रीमद्भागवत के ज्ञान सरोवर में गोता लगाएं और अमर हो जाएं।
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