यहां है वो पवित्र स्थल ‘जहां माता सीता’ धरती से हुईं थी प्रकट

Sunday, Mar 28, 2021 - 02:46 PM (IST)

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राम की वनवास यात्रा से पहले श्री राम तथा माता सीता से जुड़े अनेक पवित्र स्थलों के बारे में जानना भी जरूरी है। यहां पर ऐसे कुछ स्थलों के बारे में बता रहे हैं जो माता सीता के जन्म से लेकर श्री राम के साथ उनके विवाह से जुड़े हैं।  वह स्थान जहां माता सीता प्रकट हुईं, जहां से श्री राम के साथ उनके विवाह की वेदी बनाने के लिए मिट्टी ले जाई गई, विवाह के बाद जिस स्थान पर वे गए आदि इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं।

लक्ष्मीनारायण मंदिर, मटिहानी, जनकपुर, नेपाल
लक्ष्मीनारायण मंदिर नेपाल के मटिहानी में अवस्थित है। भगवान श्रीराम और सीता मां के विवाह की वेदी बनाने के लिए यहां से माटी ले जाई गई थी। आज भी मिथिला में विवाह की बेदी के लिए यहां से माटी ले जाई जाती है। यहां श्री सीता राम जी लक्ष्मी नारायण के अवतार के रूप में पूजित हैं। यहां नेपाल का प्रसिद्ध लक्ष्मी नारायण मठ है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा.1/73/14, 15 मानस 1/223/1)

सीतामढ़ी, (लखनदेही) बिहार
यहां सीता मां भूमि से प्रकट हुई थीं। हल का वह भाग जो पृथ्वी को चीरता चलता है, ‘सीत’ कहलाता है, जिसके नाम पर सीता जी का नाम पड़ा। यह वही स्थान है जहां रावण ने ऋषियों से कर स्वरूप उनका रुधिर निकाल कर एक घड़े में दबा दिया था। इससे भयंकर अनावृष्टि हुई और देवताओं के परामर्श से राजा जनक ने यहां हल चलाया, जिससे रावण के अत्याचारों से त्रस्त ऋषियों की चीत्कार सीता जी के स्वरूप में रावण के संहार के लिए प्रकट हुई थी। यहां तब तपोवन था और आज भी पुंडरीक, शृंगी, कपिल, खरक ऋषि तथा चक्र मुनि के आश्रम हैं। ये सभी आश्रम 10 कि.मी. के घेरे में आज भी अवशेषों के रूप में मिलते हैं। क्षेत्र में मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है। लोक विश्वास के अनुसार विवाहोपरांत बारात इधर से होकर ही अयोध्या जी गई थी। राजा जनक ने यहां बारात के विश्राम की व्यवस्था की थी।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 1/69/मानस 1/303/3, 1/342/4 से 1/343/4 तक)

विहार कुंड जनकपुर (दूधमती) नेपाल
विवाह के पश्चात चारों दूल्हा, दुल्हन यहां आमोद-प्रमोद के लिए आए थे। चारों ने यहां जल क्रीड़ा की थी इसलिए आज भी इस कुंड का नाम विहार कुंड है।       (जनश्रुतियों के आधार पर)

मणि मंडप, रानी बाजार (दूधमती), धनुषा-नेपाल
त्रेता युग में मिथिला नरेश सीरध्वज जनक के दरबार में रामजी द्वारा धनुर्भंग के बाद अयोध्याजी से बारात आई। श्री राम सहित चारों भाइयों का विवाह हुआ। जिस स्थान पर जनकपुर में मणियों से सुसज्जित वेदी और यज्ञ मंडप निर्मित हुआ वह समकाल में रानी बाजार के निकट है। यह स्थल मणि मण्डप के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन आसपास कहीं कोई मणि निर्मित परिसर नहीं है। बस नाम ही शेष है। पास ही में वह पोखरा है जहां चारों भाइयों के चरण पखारे गए थे तथा विवाह की यज्ञ वेदी बनी हैं।
( ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 1/70, 71, 72, 73 पूरे अध्याय, मानस 1/212/4,1/286/3 से 1/ 288/2, 3, 4, 1/313/3, 1/319 छंद 1/321/छन्द, 1/322/4 से 1/324/छ-4)

रत्नसागर, जनकपुर (दूधमती), नेपाल
लोकमान्यता के अनुसार राजा जनक ने चारों दामादों, बेटियों तथा समधी जी (राजा दशरथ जी) को दहेज में असीम धन, रत्नादि दिए थे। आज की ही भांति तब भी दहेज दिखाया जाता था। यहां दहेज अवलोकनार्थ रखा गया था। तब यह सागर रत्नों से भर गया था इसलिए आज भी इसे रत्नसागर कहा जाता है।
(ग्रंथ उल्लेख : वा.रा. 1/70, 71, 72, 73 पूरे अध्याय, मानस 1/212/4, 1/286/3 से 1/288/2, 3, 4, 1/313/3, 1/319 छंद 1/321/छंद, 1/322/4 से 1/324/छ-4)

Jyoti

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