Kundli Tv- यहां धरती फाड़ कर निकली थी माता दुर्गा की प्रतिमा
punjabkesari.in Monday, Oct 15, 2018 - 12:20 PM (IST)
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राजस्थान के शेखावाटी में जनपद झुंझुनू के उदयपुर वाटी (भोमिया का उदयपुर) तहसील में पोसाना गांव से 2 कि.मी. उत्तर तथा गुढ़ागौड़ जी-नवलगढ़ सड़क स्थित भोड़की गांव से 2 कि.मी. दक्षिण ‘धमाना जोहड़ा’ (बीड़) स्थित भगवती दुर्गेश्वरी जमवाय माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यह सिद्धपीठ है जहां वर्ष भर में लाखों श्रद्धालु-आस्थावान भक्तों का दर्शन, पूजन, अर्चन करने के लिए आगमन होता है। आश्विन व चैत्र नवरात्रों में तो यहां लोगों का अटूट तांता लगा रहता है।
देहली में गजनी के सुल्तान के शासनकाल में केतु व धामा नाम के दो भाई भेड़ चोरी के आरोप में पकड़े गए थे, दोनों ही मां दुर्गा के अनन्य भक्त थे। दिल्ली के कैदखाने में एक आश्चर्यजनक घटना घटी। केतु व धामा ने कारागार में चोरी के कर्म पर पश्चाताप करते हुए मां दुर्गा की स्तुति की और आगे कभी भी चोरी न करने की शपथ ली। ऐसा करते ही उनकी बेडिय़ां खुल गईं। यह सूचना सुल्तान गजनी के दिल्ली शासक (गुलाम वंश सुल्तान) के पास पहुंची तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। तब उसने केतु व धामा को जेल से रिहा कर दिया। पश्चात दोनों धनवता की पहाड़ी पर घर बनाकर रहने लगे। वहां पहाड़ी पर उन्हें तांबे की खान का पता लगा। वहां से तांबा निकालने और बेचने से वे बड़े धनवान हो गए।
एक बार केतु व धामा बहुत भारी मात्रा में तांबा गाड़ी में भर कर बेचने के लिए जा रहे थे कि रास्ते में ही सुल्तान (दिल्ली सल्तनत) के सिपाहियों ने उन्हें घेरा और तलाशी लेने लगे। तब दोनों ने इस झमेले से बचने के लिए मां भगवती का स्मरण किया। सारा तांबा कोयला में और बग्गी के ऊंट बैल में बदल गए। सिपाही भौंचक रह गए और ये दोनों मां के शुभाशीष से बच निकले। कुछ ही समय बाद केतु का निधन हो गया और उसकी धर्मपत्नी माली उसके शव के साथ सती हो गई जिन्हें ‘माली सती’ के नाम से जाना जाता है।
इसके पश्चात धामा को शिवमंदिर में एक साधु जी मिल गए। साधु ने धामा से कुछ मांगा पर धामा ने देने से इंकार कर दिया, साधु ने शाप दे दिया जिससे तांबे की खान नष्ट हो गई। धामा बहुत पछताया पर तब तक बात बिगड़ चुकी थी। एक बार पुन: धामा ने माता भगवती दुर्गा का स्मरण किया और सुमिरन करते हुए सो गया। रात्रि में स्वप्र में मां ने धामा से कहा कि अपने घोड़े को पश्चिम दिशा में ले जाओ और जहां घोड़ा रुक जाए वहीं एक मंदिर और एक तालाब बनवाओ। प्रात: धामा ने वही किया। घोड़ा जहां रुका था वहीं आज जमवाय माता का जौहड़ा है। घोड़े के रुकने पर मां ने आकाशवाणी की थी कि उसी स्थान पर तालाब बनेगा और 52 फीट दक्षिण में मां का मंदिर। मंदिर निर्माण प्रारंभ हुआ तो जमीन से मां दुर्गा स्वयं निकल पड़ीं। जमीन से अपने आप मां दुर्गा की मूर्ति (श्री विग्रह) के प्रकट होने के कारण लोगों ने उनका नाम ‘जमवाय माता’ सुमिरन करना प्रारंभ किया।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार भोड़की गांव के टीकू नामक खाती काष्ठ कारोबार करने वाले ने सोते समय मां का सान्निध्य पाया। मां ने उससे कहा कि मैं धमाना वाली जमवाय माता हूं। तुम मेरे मंदिर में मेरा भजन गाओ, मेरी आरती करो। टीकू ने कहा, मैं आपकी गाथा नहीं जानता और गाने की भी स्थिति में नहीं दूं। तब मां ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा तुम मुख खोलो और गाने का प्रयास करो, सब हो जाएगा। ऐसा ही घटित हुआ लोगों ने यह चमत्कार होते देखा।
चहुंओर माता का जय-जयकार होने लगी। सभी टीकू द्वारा गाए जाने वाली माता की गाथा सुनकर मगन हो जाते। टीकू ने मां को सुमिरन करते हुए जो कुछ भी गाया उसे ‘माता का जागरण गीत’ नाम से जाना जाता है। जमवाय माता साक्षात फल देने वाली, इच्छा की पूर्ति करने वाली मातेश्वरी दुर्गा हैं। जो श्रद्धा-भक्ति से उन्हें स्मरण करता है, मनोवांछित फल पाता है।
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