Kundli Tv - जानें, क्यों कहा जाता है शिव-पार्वती को मल्लिकार्जुन

Monday, Jul 16, 2018 - 02:37 PM (IST)

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शिव पुराण के अनुसार श्रीशैल पर मल्लिकेश्वर नामक द्वितीय ज्योतिर्लिंग है। यह भगवान शिव के अवतार हैं। इनके दर्शन-पूजन से भक्तों को अभीष्ट फल मिलता है। स्कंद ने जब शंकर जी को प्रार्थना की, तब वह अत्यंत प्रेम से कैलाश छोड़कर लिंग रूप में पुत्र को देखने की इच्छा से वहां पधारे थे। यह दूसरा ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन आदि से बहुत सुख देता है और अंत में मोक्ष भी प्रदान करता है, इसमें कोई संशय नहीं है।


पौराणिक कथा है कि ‘पहले विवाह किसका हो’- इस बात को लेकर स्वामी कार्तिक तथा गणेश जी में परस्पर विवाद हो गया। गणेश जी ने पृथ्वी की प्रदक्षिणा का प्रसंग आने पर माता-पिता की प्रदक्षिणा कर ली, अतः उनका विवाह पहले हो गया। इससे स्वामी कार्तिक रुष्ट होकर कैलाश छोड़कर श्रीशैल पर आ गए।

पुत्र के वियोग से माता पार्वती को बड़ा दुख हुआ। वह स्कंद से मिलने चलीं। भगवान शंकर भी उनके साथ श्रीशैल पर पधारे, किंतु स्वामी कार्तिक माता-पिता से मिलना नहीं चाहते थे। वह उमा-महेश्वर के पहुंचते ही श्रीशैल से तीन योजन दूर कुमार पर्वत पर जा विराजे। वह स्थान अब कुमार स्वामी के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर तथा पार्वती जी श्रीशैल पर स्थित हुए। यहां शिव जी का नाम अर्जुन तथा पार्वती देवी का नाम मल्लिका है। दोनों नाम मिलकर मल्लिकार्जुन होता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग द्वादशज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग श्रीशैल पर है। वहां 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। सती की देह का ग्रीवा भाग जहां गिरा, वहां भ्रमराम्बा देवी का मंदिर है।


मनमाड-काचीगुडा लाइन के सिकंदराबाद स्टेशन से एक लाइन द्रोणाचलम तक जाती है। इस लाइन पर कर्नूल टाऊन स्टेशन है। वहां से श्रीशैल 77 मील दूर है। मसुलीपटम-हुबली लाइन पर द्रोणाचलम से 48 मील पहले (गुंटूर से 217 मील पर) नंदयाल स्टेशन है। यहां से श्रीशैल 71 मील दूर है।

श्रीशैल के शिखर पर वृक्ष नहीं हैं। दक्षिणी मंदिरों के ढंग का पुराना मंदिर है। एक ऊंची पत्थर की चारदीवारी है, जिस पर हाथी-घोड़े बने हैं। इस परकोटे में चारों ओर द्वार हैं। द्वारों पर गोपुर बने हैं। इस प्राकार के भीतर एक प्राकार और है। दूसरे प्राकार के भीतर श्रीमल्लिकार्जुन का निजमंदिर है। यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है। मंदिर में मल्लिकार्जुन शिवलिंग है। यह शिवलिंग प्रतिमा लगभग आठ अंगुल ऊंची है और पाषाण के अनगढ़ अरघे में विराजमान है।


मंदिर के बाहर एक पीपल-पाकर का सम्मिलित वृक्ष है। इसके चारों ओर पक्का चबूतरा है। आसपास बीस-पच्चीस छोटे-छोटे शिव मंदिर हैं। मंदिर के चारों ओर बावलियां हैं और दो छोटे सरोवर भी हैं।

श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती देवी का मंदिर है। यहां इनका नाम मल्लिका देवी है। मल्लिकार्जुन के निजमंदिर का द्वार पूर्व की ओर है। द्वार के सम्मुख सभामंडप है। उसमें नंदी की विशाल प्रतिमा है। मंदिर के द्वार के भीतर नंदी की एक छोटी प्रतिमा है। शिवरात्रि पर यहां शिव-पार्वती विवाहोत्सव होता है।

मंदिर के पूर्व द्वार से एक मार्ग कृष्णा नदी तक गया है। उसे यहां पाताल गंगा कहा जाता है। यह मंदिर से लगभग पौने दो मील दूर है। आधा मार्ग सामान्य उतार का है और उसके पश्चात 852 सीढिय़ां हैं। ये सीढिय़ां खड़े उतार की हैं। बीच-बीच में चार स्थान विश्राम करने के लिए बने हैं। पर्वत से नीचे की ओर आने पर कृष्णा नदी है। यात्री वहां स्नान करके चढ़ाने के लिए जल ले आते हैं। ऊपर लौटते समय खड़ी चढ़ाई बहुत श्रमसाध्य होती है।



यहां पास में कृष्णा नदी में दो नाले मिलते हैं। उस स्थान को त्रिवेणी कहा जाता है। कृष्णा के तट पर पूर्व की ओर जाने पर एक कंदरा मिलती है। उसमें देवी तथा भैरव आदि देवताओं की प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि यह गुफा पर्वत में कई मील भीतर तक चली गई है।

शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर
मल्लिकार्जुन से छ: मील की दूरी पर शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर मंदिर हैं। कुछ श्रद्धालु शिवरात्रि से पहले वहां तक जाते हैं। शिखरेश्वर से मल्लिकार्जुन मंदिर के कलश दर्शन का ही महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्रीशैल के शिखर का दर्शन करने से पुनर्जन्म नहीं होता।

अंबाजी
मल्लिकार्जुन मंदिर से पश्चिम लगभग 2 मील की दूरी पर भ्रमराम्बा देवी का मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। अंबाजी की प्रतिमा भव्य है। आस-पास प्राचीन मठ आदि के अवशेष हैं।

बिल्ववन
शिखरेश्वर से लगभग छ: मील आगे (मल्लिकार्जुन से 12 मील पर) यह स्थान है। यहां एकमा देवी का मंदिर है।


कर्नूल टाऊन
इस नगर के सामने तुंगभद्रा के पार एक शिव मंदिर तथा रामभट्ट-देवल नामक राम मंदिर है।

आलमपुर
कर्नूल टाऊन से 4 मील पहले आलमपुर रोड स्टेशन है। यहां तुंगभद्रा के तट पर भगवान शंकर तथा भगवती के मंदिर हैं। यह स्थान पवित्र तीर्थ माना जाता है।

महानदी
यह स्थान नंदयाल स्टेशन से 10 मील की दूरी पर है। यहां भगवान शंकर का मंदिर है। एक ओंकारेश्वर मंदिर भी है। 

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