Religious Katha: केवल 1 शब्द का त्याग घर बैठे देगा वैराग्य एवं मुक्ति

Monday, Sep 20, 2021 - 11:13 AM (IST)

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Religious Katha: जापान में नानहेन नामक एक परम ज्ञानी भिक्षु थे। एक दिन एक व्यक्ति उनके पास पहुंचा और बोला ‘‘मैं संन्यास लेना चाहता हूं। इसके लिए मैंने अपने घर, परिवार, नाते, रिश्तेदार सबको तिलांजलि दे दी है। भिक्षु ने पूछा, ‘‘क्या तुम बिल्कुल अकेले हो? तुम्हारे साथ वास्तव में कोई भी नहीं है?’’

व्यक्ति ने कहा कि आप मेरे-आगे पीछे देख लीजिए आपको कोई भी नहीं मिलेगा। यह सुनकर भिक्षु बोले कि अच्छा अब जरा अपनी आंखें बंद करो। अपने अंदर झांक कर देखो कि वहां कोई और तो नहीं है? जाओ कुछ देर के लिए वृट वृक्ष की छाया में बैठ कर सोचो, फिर थोड़ी देर बाद मेरे पास आ जाना।

वह व्यक्ति वृक्ष की छाया में बैठकर कुछ देर के लिए ध्यान करने लगा। ज्यों ही उसने अपनी आंखें बंद कीं तो उसे अपने वृद्ध माता-पिता, पत्नी और बच्चों की छवि नजर आने लगी। यह देख कर वह चिंतित हो गया। घबराकर जैसे ही उसने अपनी आंखें खोलीं तो भिक्षु को अपने पास ही खड़ा पाया। 

उसने उनसे कहा, ‘‘मैं तो अपना परिवार, नाते, रिश्ते सब पीछे छोड़ आया हूं लेकिन यहां आंखें बंद करते ही उनकी छवि सामने घूमने लगती है। ऐसा क्यों हो रहा है?’’

इस पर भिक्षु ने कहा, ‘‘अब तुम जाओ और ध्यानमग्न होकर उन व्यक्तियों को अपने दिमाग से निकालने का प्रयत्न करो। फिर कुछ देर बाद मेरे पास आना।’’ 

2 घंटे बाद युवक ने भिक्षु का दरवाजा खटखटाया तो वह बोले, ‘‘कौन है?’’ 

युवक बोला, ‘‘मैं आया हूं। भिक्षु ने कहा कि लेकिन अब भी तुम अकेले नहीं हो। तुम्हारा ‘मैं’ तुम्हारे साथ लगा है। अगर तुम इसे और भीड़भाड़ को छोड़ सको तो फिर यहां आने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। तुम ‘मैं’ से मुक्ति पा लो तो फिर संन्यास लेने कि कोई जरूरत ही नहीं होगी।’’

व्यक्ति को भिक्षु की बात की गहराई समझ में आ गई कि जीवन में ‘मैं’ से मुक्ति पाना ही सहज वैराग्य एवं मुक्ति है।

Niyati Bhandari

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