ऐसे घर का अन्न-जल ग्रहण करके आप भी हो सकते हैं पवित्र

Monday, Nov 23, 2020 - 04:00 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

संत थे वह। वृंदावन पहुंचना था। पैदल चले जा रहे थे। थक भी चुके थे। ऊपर से अंधेरा उतर आया। वह एक गांव में रुक गए। गांव से बाहर ही उन्हें पता चल गया कि इस गांव में सभी वैष्णव रहते हैं उन्हें यह जानकर अच्छा लगा। गांव में प्रवेश किया, एक घर के बाहर जाकर रुके और पूछा, ‘‘भाई मैं यहां आज की रात विश्राम करना चाहता हूं।’’ 

‘‘पधारिए। यह हमारा सौभाग्य।’’ 

‘‘मगर मैं केवल उस घर में रहता हूं जहां खान-पान, व्यवहार, विचार, बातचीत सभी पवित्र हों। अन्न-जल भी ऐसे ही घर का सेवन करता हूं।’’ संत जी ने कहा।

‘‘तब तो आपको कहीं और जाना होगा क्योंकि मैं वैष्णव नहीं। बाकी सब गांव वाले वैष्णव हैं।’’

संत आगे बढ़ गए और दूसरे घर के स्वामी से जाकर अपनी बात कही तो उसने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘मुझ में धर्म जैसी कोई बात नहीं है। घर में फिर पवित्रता कैसी। फिर भी यदि आप रात्रि मेरे यहां बिताएं तो यह मेरा सौभाग्य होगा... वैसे मेरे अतिरिक्त यह सारा गांव पवित्र है। यहां मेरे अलावा अन्य सब वैष्णव हैं।’’

जहां धर्म नहीं संत जी भला ऐसे घर में कैसे रुकते सो वह आगे बढ़ गए...। बस एक के बाद एक, कई घर देख लिए। तब कहीं उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि यह पूरा गांव ही वैष्णव लोगों का है। हर कोई अपने को ऐसा न कह कर अपनी सादगी का ही परिचय दे रहा है।
वह एक घर में प्रवेश कर गए। स्वामी ने फिर कहा, ‘‘आपका स्वागत है पर मैं धर्म-कर्म से बहुत दूर हूं । पहले भी बता चुका हूं।’’

तब संत ने कहा, ‘‘अरे भाई, अधर्मी आप लोग नहीं। मैं ही हूं। आज आपके घर का अन्न जल ग्रहण करके मैं भी पवित्र होना चाहता हूं।’’ 

Niyati Bhandari

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