कर्म और वचन में नहीं होना चाहिए अंतर

Tuesday, May 12, 2020 - 10:20 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सूफी संत शिबली निहाबन्द नामक स्थान के गवर्नर थे। गवर्नर भी ऐसे कि उनके शासन की खूबियां बादशाह तक लगभग रोजाना ही पहुंचती थीं। वहीं बादशाह भी अक्सर अपने सभी गवर्नरों को बुलाकर शासन का हालचाल पूछ लिया करते। जब कभी बादशाह खुश होते तो वह अपने गवर्नरों को खिलअत देते। खिलअत सम्मान के लिए या जने वाला एक तरह का वस्त्र होता है। शिबली के साथ कभी-कभार बाकी गवर्नरों को भी खिलअत मिलती। एक बार उनमें से एक गवर्नर को खिलअत मिली कि अचानक  से छींक आ गई। उसने अपनी नाक खिलअत की आस्तीन से पोंछ ली। बादशाह को यह नागवार गुजरा, उसने गवर्नर से खिलअत वापिस ले ली और उसे गवर्नरी से भी हटा दिया। 

शिबली ने यह देखा तो उन्होंने अपनी भी खिलअत और गवर्नरी बादशाह को वापस कर दी। बादशाह ने वजह पूछी तो शिबली बोले, “हुजूर, जब आपकी छोटी-सी खिलअत में हुई गुस्ताखी बर्दाश्त के काबिल नहीं है, तो सोचिए कि ईश्वर ने हमें दुनिया की जो खिलअत दी है, उसमें वह हमारी कमियां कैसे बर्दाश्त करता होगा?" 

अब में ईश्वर के मार्ग पर ही चलूंगा और मेरे लिए हर चीज से ज्यादा जरूरी है मेरे ईश्वर का राजी होना। इस तरह शिबली ने महल छोड़कर सूफी संत बनने की ओर कदम बढ़ा दिया । उनके त्याग, शास्त्रार्थ और सेवा के किस्से बढ़ते चले गए। वह मशहूर सूफी संत जुनैद बगदादी के शिष्य बने और उनसे दीक्षा भी ली। शिबली हमें बताते हैं कि त्याग ईश्वर तक पहुंचने का सबसे बेहतरीन रास्ता है। दूसरी बात यह कि हम जो प्रवचन दें, जो विचार मन में पालें, उन्हें व्यवहार में उतारें भी। कर्म और वचन में अंतर नहीं होना चाहिए। त्याग के लिए कहें तो खुद त्याग करें समर्पण के लिए बोलें तो समर्पित हों। मतलब जो कहा जाए, किया जाए।

Jyoti

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