शिव पुराण: शिव में है जल, जल में है शिव

Saturday, Jul 27, 2019 - 06:41 PM (IST)

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श्रावण का महीना जितना भगवान शंकर से संबंधित उतना ही इसका पानी से भी गहरा संबंध है। कहा जाता इसी महीने से बारिशें लगना शुरू होती हैं। सावन की इन फुव्वहारों के बीच लोग शिव जी की धून में पूरी तरह मग्न हो जाते हैं। इस पूरे महीने में शिव जी पर जलाभिषेक किया जाता है। वैसे तो साल के ही प्रतयेक दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। मगर क्या आप में से किसी ने सोचा है आख़िर क्यों भोलेनाथ को जल इतना प्रिय क्यों है। हांलाकि आप में से बहुत से ऐसे भी लोग होंगे जिन्होंने इस संदर्भ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं पढ़ी-सुनी होगी। मगर इससे जुड़ा एक ऐसी भी तथ्य है जिससे कम ही लोग अवगत होंगे। तो चलिए जानते हैं शिव पुराण में इससे किए वर्णन के बारे में-

श्रावण में शिव जी पर जल चढ़ाने का महत्व-
शास्त्रों में भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने के महत्व को समुद्र मंथन से जोड़ा गया है। इसमें बताया गया कि जब अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव शंकर का कंठ एकदम नीला पड़ गया था तो विष की जलन को शांत करने के लिए भोलेभंडारी को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।

शिव स्वयं जल हैं
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इससे जुड़ा श्लोक इस प्रकार है।

संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्‌।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः॥


अर्थात- इस श्लोक का अर्थ है जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करनी चाहिए। बता दें श्रावण में सभी शिव मंदिरों के आस-पास पूजन सामग्रियों की दुकानें सजने लगती हैं। भगवान भोलेनाथ के प्रिय बिल्व पत्र से लेकर धतूरा और तरह-तरह के पुष्पों की मालाएं लेकर भक्त पूजा के लिए तैयार हैं।

पूजा में रुद्राक्ष का भी विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार भगवान रूद्र की आंखों से गिरे आंसू से रुद्राक्ष का जन्म हुआ इसलिए रुद्राक्ष भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है।

Jyoti

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